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सोचें तब रह पाएंगे कैसे यहां सभी जीवित? अनेकांत में ही तो इसका है उत्तर निहित।
व्यक्ति व समाज के बीच संबंध गहरा ज्यों बूंद का सागर से, बूंद से सागरा पिण्ड का ब्रह्मण्ड से भी ऐसा ही परस्परा कहा भी जाता किकंकड़ भी हिल जाए तो हिल जाती पूरी धरा अस्तित्व का सिद्धान्त इतना खरा-खरा अच्छा करो, अच्छा होगा; बुरा करो, होगा बुरा
तद्नुरूप अनुपालन नकार का परिमार्जन, सकार का समर्थन व्रतमय हो जीवन, व्रतमय जन आंदोलन सृष्टिशील भाव से हो ऋत का निर्वाहन प्रकृत-सुसंस्कृत जीवन का अनुशीलन व्यक्ति व समाज का हो सुसंगत व्यवस्थापन हिंसा, युद्ध, अनाचार से विलगन बने न मनुष्य आशाविहीन जीवन बने सभी का सहजीवी संगान क्यों लगे ये नारे"एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक जन''? क्यों किन्हीं को बांधे, हांके किसी का कठमुल्लापन? सुनिश्चित हो अंतिम व्यक्ति का जीवन-यापन अनेकांत योंसबकी संस्थिति का सम्मान एक महत्त मानवीय अभियान अनेकांत के संदर्भ में गांधी का कथनमैं अद्वैतवादी पर द्वैतवाद का भी करता समर्थन
और परिवर्तनशील संसार, अतः द्वैत असत्य पर इसका भी एक रूप, अतः सत्यासत्य मैं अनेकांतवादी-स्याद्वादी। भाष्यकार की दृष्टि में मेरी सोच त्रुटिपूर्ण पर अनुभव में मेरी ऐसी ही साक्षी सात अंधे और हाथी किस-किसने क्या बात कही? क्या अपनी-अपनी दृष्टि में सही सही? और गलत भी? महावीर की व्याख्या क्या ऐसी भी नहीं?
तब क्या प्रश्न ऐसा भी हो सकता हैजब अनेकांत ही सत्य है तो देव व असुर के बीच विभेद कैसा? त्रिगुणों में तमस का परिहार भी क्यों कर हो?
जो जैसा चलता है, चलने दो सभी को क्यों चाहा जाए कोई ऐसा' ----- 'वैसा' हो, न हो जो नहीं मान्य उसका हो सके कैसे अंत? चाहेगा या नहीं ऐसा करना अनेकांत?
मैं कहता - ''मैं सत्य हूँ पर तू भी झूठ नहीं है" क्या अनेकांत का यही तर्क है? मैं कहता - ''यही सत्य' पर तू कहता—'यह सत्य नहीं है।' क्या अनेकांत में संभव यह भी है? जीया जाए तब अनेकांत कैसे व्यवहार में?
अनेकांत कहताअस्तित्व पूर्णतः है परस्पर सहबंधित एक को देखो तब दूसरे को छोड़ो मत अपनी-अपनी स्थिति में सभी हैं यहां संगत अर्थ क्या कि असहमत हों, या कि हों सहमत क्रिया होगी तो होगी प्रतिक्रिया यहां निश्चित
खलील जिब्रान द्वारा लिखी एक कथा आस्तिक-नास्तिक के बीच विवाद हुआ सप्ताह भर चला, अनिर्णित रहा पर आठवें दिन प्रातः यह क्या था घटा अपने सब शस्त्रों को जला आस्तिक उसमें जल मरा और नास्तिक मरा पाया गया—
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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