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"......... स्यात् है", "...... स्यात नहीं है" आकार-प्रकार की भिन्नता भी इसीलिए अनेकांत स्याद्वाद भी है किस खण्ड को देखा जाए
खंड-खंड अखंडता पाए मूल तत्व जितनेथे, उतने ही हैं, और उतने ही होंगे
वस्तु यों खंड-खंड अखंड है उनमें जो है वह कभी नष्ट नहीं होता
यों वस्तुबोध भी अनेकांत है। और जो नहीं है वह कभी उत्पन्न नहीं होता इनमें अत्यंताभाव है
अनेकांत का आशय इन्हें हम पर्यायों के माध्यम से जान सकते हैं। दृष्टिकोण को व्यापक करना है
प्रतिपक्षी दृष्टिकोण को भी परखना है, स्वीकारना है अस्तित्व युगलरूप भी है
विचार को पूर्णता देना है सत्-असत्, नित्य-अनित्य, अस्ति-नास्ति, आदि
दुराग्रह, कदाग्रह से मुक्त हो द्वन्द्व का होना जागकित नियम है
"ही" वादी नहीं, ''भी'' वादी होना है। पर युगलों का सहअस्तित्व भी तत्व है विपरीत के बीच एकत्व है
अंतिम सत्य का दावा एकत्व में द्वैत है, अनेकत्व है
या एक मात्र सत्य का दावा यही तो अनेकांत है।
कौन करे!
अनेकांत भला ऐसा दुस्साहसी किसे होने दे! अनेकांत की व्याख्या में जो 'अण्ड' वही 'ब्रह्माण्ड'
उदाहरण बड़े रोचक हैजो बूंद, वही सागर
मै एक हूं या दोनों? जो दीपक, वही दिवाकर
चेतन दृष्टि से मैं एक हूं आज जो अच्छा, वही कल बुरा
और ज्ञान व दर्शन दृष्टि से दोनों, कल का बुरा, हो जाए आज सुधरा मैं शाश्वत हूं या गतिशील? जो जीवनदायक, वही विध्वंसक
कालातीत चेतना में मैं शाश्वत हूं या कि विध्वंसक ही हो जाए जीवनदायक और त्रिकाल चेतना में गतिशील। गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ या साधु जीवन? संयम के बिना क्या साधु का जीवन! क्या साधना अरण्य में ही हो सकती है? गृहस्थ भी श्रेष्ठ यदि हो संयम, अनुशासन ।
साधना गांव में भी हो सकती है और अरण्य में भी
और दोनों में ही नहीं हो सकती, वस्तु के पर्याय भेद हैं
आत्मा व शरीर का भेद जानने वाला दूध कभी दही भी है
साधना कहीं भी कर लेगा दही का बिलौना किया जाता है
और ऐसा भेद न जानने वाला कार्यरत दोनों हाथ
कहीं भी नहीं कर सकेगा प्रत्येक हाथआगे-पीछे, पीछे-आगे आता-जाता है
सोना अच्छा है या जागना? इसी क्रम में नवनीत निकल आता है अधार्मिक का सोना अच्छा है व धार्मिक का पद्धति ऐसी ही सत्य-संधान की
जागना या वस्तु को पर्यायों, खंडों में जानने की
__ आलसी होना अच्छा है या क्रियाशील होना? आम मीठा भी, पीला भी, मृदु भी, सुगंधित भी
असंयमी का आलसी होना अच्छा है 98 -
- तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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