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पराशर स्मृति में अहिंसा
स्मृति साहित्य में मनुस्मृति वैदिक धर्म या ब्राह्मण परम्परा का पथ प्रदर्शक और प्रतिनिधि ग्रंथ है। जिसमें वर्णधर्म तथा आश्रमधर्म पर विशिष्ट सामग्री के साथ ही खाद्यअखाद्य, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। पराशर स्मृति में कलियुग में चारों वर्णों के साधारण धर्म तथा धर्मज्ञानियों द्वारा जो करणीय है, उस सूक्ष्म और स्थूल धर्म का विस्तार से उल्लेख है ।
- डॉ. बच्छराज दूगड़
अहिंसा प्रकृति की वादियों में ही अठखेलियां करती है। पराशर स्मृति में पराशर ऋषि के आश्रम का वर्णन करते हुए कहा गया है
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नानावृक्षसमाकीर्ण फलपुष्पोपशोभितम् । नदीप्रस्रवणोपेतं पुण्यतीर्थेरलङ्कृतम् ॥ 6 ॥ मृगपक्षिनिनादञ्च देवतायतनावृतम् । यक्षगन्धर्वसिद्धैश्च नृत्यगीतैरलङ्कृतम् ॥ 7 ॥
वृक्षों और लताओं से भरे हुए, फलों और पुष्पों से अलंकृत, नदियों और झरनों से युक्त, पवित्र तीर्थों से सुशोभित पशु-पक्षियों की आवाजों से समृद्ध, देवताओं के निवासों से घिरे हुए यक्षों, गन्धर्वों और सिद्धों के द्वारा नृत्य और गीतों से मंडित बदरिकाश्रम था अर्थात् उनका आश्रम प्राणीमात्र के प्रति मैत्री का ऐसा सजीव स्थल था जहां अहिंसा पल्लवित और पुष्पित होती थी ।
चूल्हा,
महर्षि पराशर ने गार्हस्थ्य में हिंसा के पांच स्थल कहे हैं- ओखली, चक्की, घड़ा और झाडू। यहां यह विचारणीय है कि ऋषि ने जैनों के समान अग्नि और जल जीव माना है या नहीं ? जहां तक जल के जीव होने का प्रश्न है, जल के घड़े को वध स्थल मानने से यह स्पष्ट हो ही जाता है कि जल को जीव के रूप में स्वीकृति दी गई है। अग्नि के
तुलसी प्रज्ञा जनवरी- जून, 2001 ।
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