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इस ब्रह्माण्ड की विशाल रंगभूमि पर अभिनय - रत दो नट - चेतन और अचेतन हैं । केवल दो नट-चेतन जीव और अचेतन पुद्गल । इन दोनों की क्रीड़ाओं ने जीवन - बेल रची। पृथ्वी, सलिल, कृशानु, समीरण, तरुगण और तिर्यंच (देहधारी) इस जीवन- बैल के विभिन्न पर्याय बने । तीर से बद्ध नीर की तरह पुद्गल-वेष्टित जीवों का अवतरण हुआ । सम्पूर्ण सृष्टि
व्याप्त कुछ अणुओं ने मिल कर एक जीव को मनुष्य की देह प्रदान की। मनुष्य ने जब पहली बार अपनी आँखें खोली तो ऊपर आकाश को देखा। मन में जिज्ञासाओं का ज्वार उमड़ायह नीला नीला क्या है? अन्य जीवों से अलग, अनुसन्धान और अन्वेषण की दिशा में मनुष्य की अशेष यात्रा का यह प्रथम चरण था ।
शैशव काल सुखद होता है । मनुष्य जाति का शैशव काल भी सुखद था । हर दम्पति अपने शेष काल में एक युगल को जन्म देता और कुछ माह बाद पति-पत्नी दोनों एक साथ देह त्याग देते । नवजात द्रुतगति से बढ़ते और बड़े होकर पति-पत्नी बन जाते। लम्बे अन्तराल से क्षुधा - पूर्ति की आवश्यकता अनुभव होती। कल्पवृक्ष उसे पूरी कर देते। सीमित जनसंख्या, सीमित इच्छायें, सीमित आवश्यकतायें और सीमित संसार । न कोई समाज था, न नगर, न गाँव । न शासक, न शस्त्र, न अर्थ, न शोषण, न छलना, न आक्षेप, न अपराध, न दण्ड और न रोग, न चिकित्सा । सर्वत्र सहज सिद्ध संन्यास ।
यह उत्सर्पिणी काल था जब वस्तु-गुण अपने क्रमिक विकास के पथ पर होते हैं । समय ने करवट बदली। अवसर्पिणी काल का प्रारम्भ हुआ और उसके साथ उन वस्तुओं के गुण-धर्म में ह्रास का क्रम । कल्पवृक्ष सूख गये। उनके कार्पण्य से अभाव की सृष्टि हुई और मनुष्य के उपशांत मन में क्रोध, मान, माया और लोभ का उदय हुआ ।
'है उत्कट अनुभाव काल का, अघटित घटना घट जाती
प्रखर चेतना सो जाती है, सुप्त चेतना जग जाती।' पृष्ठ 13
कल्पवृक्षों पर सब अपने-अपने अधिकार जताने लगे। स्वत्व हरण और कलह कुटिलता की बढ़ती वृत्ति से त्रस्त युगलों को सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकता अनुभव हुई। मुक्त पवन में श्वास लेने वाले युगल-समूह ने नेतृत्व की खोज की और विमलवाहन को प्रथम कुलकर के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने सुव्यवस्था हेतु नियमों का अंकुश लगाया। समय रथ आगे बढ़ा और उसके साथ यौगलिक युग अपने अवसान की ओर । कुलकर व्यवस्था ने भी सांध्य बेला देखी । आत्म-अनुशासन का पहला चरण विन्यस्त हुआ, तो राजतंत्र का दूसरा चरण आश्वस्त ।
कुलकर नाभि और पत्नी मरुदेवा । उत्तर रात्रि में मरुदेवा ने विलक्षण स्वप्न देखापीन - स्कन्ध वृषभ, स्वर्ग से उतर रहा विक्रमशाली सिंह, पद्मवासिनी लक्ष्मी और सुरभित सुमन-माला | स्वप्न में दिखे इन प्रतीकों के अनुरूप ओज-तेज युक्त हिरण्यकांतिमय देहयष्टि लिए ऋषभ का जन्म हुआ। शैशव को पार कर ऋषभ ने युवावस्था में पैर रखे। सहजात
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तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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