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श्रावकाचार में इसी को स्पष्ट करते हुए कहा गया है-सुहमा अवाय विसया खणखइणो अत्थपज्जया दिट्ठा । वंजणपज्जया पुण थूलागिए गोयरा चिरविवत्था।” अर्थात् अर्थपर्याय सूक्ष्म है, अवाय (ज्ञान) विषयक है, अतः शब्द से नहीं कहा जा सकता और क्षण-क्षण में बदलता रहता है किन्तु व्यंजनपर्याय स्थूल है, शब्दगोचर है अर्थात् शब्द से कहा जा सकता है और चिरस्थायी है।
तर्कणा में व्यंजनपर्याय के भेद पर प्रकाश डालते हुए कहा गया हैद्रव्यतो गुणतो द्वेधा शुद्धतोऽशुद्धतस्तथा।। शुद्ध द्रव्य व्यंजनाख्यश्चेतनो सिद्धता यथा ॥18
अर्थात् व्यंजनपर्याय के दो भेद हैं-द्रव्यव्यंजनपर्याय और गुणव्यंजनपर्याय । शुद्धता और अशुद्धता की दृष्टि से दोनों के दो-दो भेद किये गये हैं। द्रव्यव्यंजनपर्याय के दो भेद-शुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय, अशुद्ध द्रव्यव्यंजनपर्याय । उदाहरणार्थ चेतन द्रव्य का सिद्ध पर्याय शुद्ध द्रव्य-व्यंजनपर्याय है और चेतन द्रव्य का मनुष्य, देव, नारक और तिर्यंच पर्याय अशुद्ध द्रव्य व्यंजन पर्याय है। गुण से भी इसी प्रकार का भेद किया गया है। केवलज्ञान पर्याय शुद्ध गुणव्यंजनपर्याय है और मतिज्ञान,श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मनःपर्याय ज्ञान अशुद्ध गुण व्यंजनपर्याय है। नियमसार में कुन्दकुन्दाचार्य ने इसी को स्वभाव और विभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय कहा है। शुद्ध द्रव्य व्यंजनपर्याय परमाणु है जिसका कभी नाश नहीं होता और द्वयणुक आदि अशुद्ध द्रव्यव्यंजनपर्याय है, क्योंकि ये संयोग से उत्पन्न होने के कारण नाशवान है । परमाणु के गुण की अपेक्षा से शुद्ध गुण व्यंजनपर्याय और द्वयणुकादि के गुण की अपेक्षा से अशुद्ध गुण व्यंजनपर्याय भी माना गया है।
अर्थ पर्याय को स्पष्ट करते हुए भी तर्कणा में कहा गया हैऋजुसूत्रमतेनार्थपर्यायः क्षणवृत्तिमान । आभ्यन्तरः शुद्ध इति तदन्योऽशुद्ध ईरितः ॥
अर्थात् अर्थपर्याय क्षणवृत्ति वाला है। व्यंजनपर्याय की तरह ही अर्थपर्याय भी शुद्ध अर्थपर्याय और अशुद्ध अर्थपर्याय से दो प्रकार का है। ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से जो क्षणक्षण में परिणाम को प्राप्त होता है, इसे शुद्धार्थपर्याय और इससे अन्य अर्थात् अधिक कालवर्ति होने से अशुद्ध अर्थपर्याय का भी अस्तित्व है।
तर्कणाकार ने व्यंजन और अर्थपर्याय के अंतर को एक दृष्टान्त के द्वारा स्पष्ट करते हुए कहा है
नरो हि नर शब्दस्य यथा व्यंजनपर्यायः । बालादि कोऽर्थ पर्यायः संमतो भणितस्त्वयम् ।।21
अर्थात मनुष्य का मनुष्य पर्याय व्यंजन पर्याय है और बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था अर्थपर्याय है। सन्मति तर्क में भी इसी तथ्य को इस रूप में स्पष्ट किया गया है
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