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होती है जिसे देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि अमुक जीव कितने इन्द्रिय वाला है। दो इन्द्रिय जीवों के न तो टांगें होती हैं और न ही पंख । वे जमीन पर रैंग कर चलते हैं। तीन इन्द्रिय जीवों के टांगें तो होती हैं, लेकिन पंख नहीं होते हैं। वे अपनी टांगों की सहायता से चलते हैं। चार इन्द्रिय जीवों के टाँगे भी होती हैं तथा पंख भी। वे चल भी सकते हैं तथा उड़ भी सकते हैं।
दो इन्द्रिय जीवों की आयु 48 मिनिट से 12 वर्ष तक हो सकती है। तीन इन्द्रिय जीवों की आयु 48 मिनिट से 49 दिन तक हो सकती है तथा चार इन्द्रिय जीवों की आयु 48 मिनिट से 6 माह तक हो सकती है।
प्रत्येक जीव (संसारी) के चार, पांच या छह पर्याप्तियाँ होती हैं। ये पर्याप्ति हैंआहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन । एक इन्द्रिय जीवों के चार पर्याप्ति होती हैं जबकि दो, तीन या चार इन्द्रिय जीवों के पहली पांच तथा पंचेन्द्रिय जीवों के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं। (4) विवेचना एवं निष्कर्ष
यहां हम उपरोक्त वर्णित सूक्ष्म-जीवों को जैन दर्शन के अनुसार वर्गीकृत करने का प्रयत्न करेंगे। सबसे पहले हम प्रोटोजोआ तथा युग्लीना की चर्चा करेंगे। प्रोटोजोआ अपने शरीर का विस्तरण करके किसी भी दिशा में गमन कर सकता है तथा अपने भोजन को निगलने में भी अपने शरीर को एक विशेष आकृति देता है। यद्यपि इसके कोई स्पष्ट मुख नहीं होता है, फिर भी यह भोजन के कणों को निगल लेता है। इसे प्राथमिक पशु मानते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हए जैन वर्गीकरण के अनुसार उन्हें दो इन्द्रिय जीवों की श्रेणी में रखा जा सकता है। युग्लीवा प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना सकता है, लेकिन साथ ही इसके स्पष्ट एक मुंह भी होता है। इसे दो इन्द्रिय जीव ही मानना चाहिए।
फफूंद तथा काई तो वनस्पति जैसी ही हैं। कई (एग्जे) तो प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं जबकि फफूंद एक गैर-प्रकाश संश्लेषित वनस्पति है। वस्तुतः काई कार्बनिक तत्वों को अपना भोजन बना लेते हैं। इन दोनों को वनस्पतिकायिक जीव मानना चाहिए।
अब सबसे अधिक दिलचस्प आते हैं बैक्टेरिया । बैक्टेरिया वनस्पति हैं या पशु, स्थावर हैं या त्रस, यह चर्चा करने से पहले हमें वनस्पति एवं पशु के बीच अन्तर को समझना होगा। इनमें मुख्य आधार यह है कि वनस्पति में तंतु-तंत्र का अभाव होता है जबकि पशुओं में तंतु-तंत्र होता है । वनस्पतियों में हारमोन्स उस तरह कार्य नहीं करते हैं जैसे कि पशुओं में करते हैं। बैक्टेरिया में भी तंतु-तन्त्र का अभाव होता है, अतः इन्हें पशु की श्रेणी में तो नहीं रखा जा सकता है। इसलिए इन्हें वनस्पति की श्रेणी में रखना चाहिए तथा उन्हें स्थावर
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IIIIIIIIIIIII तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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