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________________ इनकी स्वयं की कोई कोशिका नहीं होती है। इनके कोशिका का एक हिस्सा मात्र ही होता है। ये किसी अन्य की कोशिका, जैसे-बैक्टेरिया में प्रवेश करने के पश्चात् ही वंश - वृद्धि करते हैं। ये उस कोशिका की ऊर्जा को अपनी वंश वृद्धि में प्रयोग करते हैं। जब ये उस आश्रयदाता कोशिका के अन्दर वृद्धि करते हैं तो कोशिका फट जाती है तथा वायरस बाहर फैल जाते हैं । वायरस छड़ या गेंद आदि के आकार के होते हैं । इन वायरसों से सूक्ष्म जीव भी पाये जाते हैं जिन्हें सब - वायरस कहते हैं । इनके सम्बन्ध में अभी खोज जारी है। (3) जैन दर्शनानुसार जीवों का वर्गीकरण जैन दर्शन के अनुसार संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं- त्रस तथा स्थावर । त्रस जीव हैं जो भोजन व सुरक्षा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक धीमी या तेज गति से गमन करते हैं । दुःख-सुख तथा भय आदि का अनुभव करते हैं तथा पन्द्रह प्रकार के दुःखों से स्वयं को बचाने का प्रयत्न करते हैं। ये कम से कम दो इन्द्रिय वाले होते हैं, ये इन्द्रियां हैं - स्पर्शन तथा रसना। पंचेन्द्रिय त्रसों में से कुछ के मन भी होता है। दूसरे प्रकार के जीव स्थावर कहलाते हैं, क्योंकि वे स्वयं गमन नहीं कर सकते हैं। स्थावर जीव पाँच प्रकार के होते हैं - पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक । इन सब जीवों के मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय होती है। पृथ्वी जैसे -मिट्टी पत्थर आदि ही है शरीर जिनका वे पृथ्वीकायिक जीव कहलाते हैं। इसी प्रकार जल ही है शरीर जिनका वे जलकायिक जीव, अग्नि ही है शरीर जिनका वे अग्निकायिक तथा वायु ही है शरीर जिनका वे वायुकायिक जीव कहलाते हैं। विभिन्न प्रकार के पेड़पौधे वनस्पतिकायिक जीव हैं। सजीवों को भी इन्द्रियों के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया गया है- दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय तथा पांच इन्द्रिय जीव । जिन जीवों के स्पर्शन तथा रसना या जिह्वा ये दो इन्द्रियां होती हैं वे दो इन्द्रिय जीव कहलाते हैं, जैसे केंचुआ, जोंक आदि । जिन जीवों के स्पर्शन, रसन तथा घ्राण तीन इन्द्रियां पायी जाती हैं वे तीन इन्द्रिय जीव कहलाते हैं, जैसे-चींटी, जूं आदि । जिन जीवों के स्पर्शन, रसन, घ्राण व चक्षु (नेत्र) ये चार इन्द्रियाँ पायी जाती हैं वे चार इन्द्रिय जीव कहलाते हैं, जैसे- मक्खी, मच्छर आदि । जिन जीवों के स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु व कर्ण ये पाँचों इन्द्रियाँ पायी जाती हैं, वे पंचेन्द्रिय जीव कहलाते हैं, जैसे- गाय, घोड़ा, मनुष्य आदि । दो, तीन व चार इन्द्रिय जीव यदि सूक्ष्म आकार वाले हैं तो यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है कि वह कितने इन्द्रिय वाले जीव हैं। लेकिन इन जीवों की अपनी कुछ विशिष्टता तुलसी प्रज्ञा जनवरी- जून, 2001 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only 23 www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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