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________________ से निवर्तन होता है । यह तथ्य न्यूनाधिक रूप में सभी मोक्षवादी दर्शनों में मान्य है । परन्तु जैन दर्शन में इनका जितना विस्तार है उतना अन्यत्र प्राप्य नहीं है। क्रियावादी के दो प्रकार हैंसम्यग्दृष्टि क्रियावादी, मिथ्यादृष्टि क्रियावादी सम्यग्दृष्टि क्रियावादी— जो आत्मवादी है - आत्मा के अस्तित्व में जिसका विश्वास है । लोकवादी है - षड् द्रव्यात्मक लोक को स्वीकार करता है। जो कर्मवादी है - जीव का कर्म पुद्गलों से बंधन होता है । बन्ध पुण्य-पाप आदि तत्वों माता है। जो क्रियावादी है-क्रिया करने से आत्म प्रदेशों का कर्म से बंधन होता है अथवा उत्थान कर्म- बल- - वीर्य - - पुरुषाकार- र-पराक्रम रूप सद् क्रियाओं से कर्मों का नाश होता है - इस तत्त्व को जानता है। 32 उपर्युक्त क्रियावादी सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है। जो दर्शन - ज्ञान - चारित्र - तप- विनय -सत्य- -समिति गुप्ति आदि क्रियाओं में रुचि रखता है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है। दशाश्रुत स्कंध दशा6 सू.17 में जिस क्रियावादी का वर्णन है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है। सूत्रकृतांग श्रु 1 अ. 12. गा. 20-21 में जिस क्रियावाद विज्ञाता का उल्लेख है वह सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है। - क्रियावादी है वह नियम से भव्य है, शुक्ल पाक्षिक है तथा अर्ध पुद्गल परावर्तन में अवश्य मोक्ष जाता है । क्रियावादी सम्यग्दृष्टि जीव अभव्य तथा कृष्णपाक्षिक नहीं होता | 33 क्रिया मोक्ष का प्रधान अंग है अथवा क्रिया ही परलोक साधन के लिये यथेष्ट है, ऐसा मानता है वही सम्यग्दृष्टि क्रियावादी है। 34 मिथ्यादृष्टि क्रियावादी जो जीवाजीवादि के अस्तित्व से सहमत है किन्तु उनके नित्यानित्यत्व तथा स्व-पर तथा काल-नियति स्वभाव - ईश्वर - आत्मा आदि को निरपेक्ष कारण के रूप में मानता है वह मिथ्यादृष्टि क्रियावादी है। ज्ञानरहित या ज्ञाननिरपेक्ष क्रियाओं से स्वर्ग - अपवर्ग की प्राप्ति हो सकती है— ऐसा कहने वाला मिथ्यादृष्टि है । क्रिया की अनिवार्यता - - Jain Education International क्रियावाद जैन दर्शन का महत्त्वपूर्ण विषय है। जीवन अच्छी-बुरी क्रियाओं से संवलित है । जीव सदा एजना, व्यंजना, चलना, स्पंदना, घटना, उदीरणा इनमें से किसी न किसी प्रकार की क्रिया अवश्य करता है। इन क्रियाओं से संयुक्त जीव क्रिया के अनुरूप भावों का तुलसी प्रज्ञा जनवरी- जून, 2001 For Private & Personal Use Only 13 www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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