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स्थानांग सूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकार बतलाये हैं1. एकवादी
2. अनेकवादी 3. मितवादी
4. निमित्तवादी 5. सातवादी
6. समुच्छेदवादी 7. नित्यवादी
8. नास्ति परलोकवादी एकवादी के अभिमत का निरूपण सूत्रकृतांग के 1/1/9 में, निमित्तवादी का 1/1/ 64-67 तथा 2/9/32 में प्राप्त है। सतवादी का 1/3/66 और नास्ति परलोकवादी का 1/1/ 11-12 तथा 2/1/13 में मिलता है।
जैन मुनि के लिये एक संकल्प का विधान है जो प्रतिदिन किया जाता है-अकिरियं परियाणामि, किरियं उवसंपज्जामि- मैं अक्रिया का परित्याग करता हूं और क्रिया की उपसंपदा स्वीकार करता हूं।
नियुक्तिकार ने अक्रियावादियों के 84 प्रवादों का उल्लेख किया है। 13 अक्रियावाद के अनुसार कोई भी पदार्थ स्थिर नहीं है। उत्पत्ति के बाद पदार्थ का विनाश हो जाता है। तब पुण्य-पाप की क्रिया किसी तरह संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने पुण्य-पाप के अतिरिक्त सात पदार्थ ही स्वीकार किये हैं। सात तत्त्व के स्वतः-परतः दो-दो भेद हैं। इस प्रकार 7x2-14 भेद हए । काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन छह तत्त्वों के साथ गुणन करने से 14x6=84 भेद हुए।
चूर्णिकार ने सांख्य एवं ईश्वर को कारण मानने वाले वैशेषिक दर्शन को अक्रियावाद की कोटि में परिगणित किया है।
क्रियावाद और अक्रियावाद का चिन्तन आत्मा को केन्द्र में रखकर किया गया है। आत्मा है, वह कर्म का कर्ता है, भोक्ता है, पुनर्भवगामी है और उसका निर्वाण होता है। यह क्रियावाद का आधार है। इन्हें स्वीकार नहीं करने वाला अक्रियावादी है। सांख्यदर्शन में
आत्मा को कर्म का कर्ता नहीं माना है। वैशेषिक दर्शन में आत्मा कर्म फल भोगने में स्वतंत्र नहीं है। इस दृष्टि से इन्हें अक्रियावादी माना है, ऐसी संभावना लगती है।
. आचार्य अकलंक ने प्रमुख अक्रियावादी आचार्यों के नाम प्रस्तुत किये हैं-कोकल, कांठेविद्धि, कौशिक, हरिश्यश्रुमान्, कपिल, रोमश, हारित, अश्वमुंड, अश्वलायन प्रभृति। 15 अज्ञानवाद
अज्ञानवाद का आधार अज्ञान है। अज्ञानवादियों के अभिमत से ज्ञान ही सब समस्याओं का मूल है। कलह का निमित्त है। पूर्णज्ञान किसी में संभव नहीं। अधूरा ज्ञान नाना मतों का जनक है।
SI TIVITITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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