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________________ समकालीन भाषाओं का प्रभाव रचनाकार पर अवश्य ही पड़ता है। विवेकमंजरी प्रकरण में सामान्य प्राकृत के अतिरिक्त मागधी और अपभ्रंश भाषा प्रयोग देखने को मिलता है। भाषागत वैशिष्ट्य के अन्तर्गत कारक-क्रिया रूप, स्वर- व्यंजन परिवर्तन, आगम, लोप, व्यत्यय आदि बिन्दुओं के आधार पर कृति का मूल्यांकन किया जाना अपेक्षित है। यहां पर कुछ लक्षणों का प्रतिपादन किया गया है 1. विवेकमंजरी प्रकरण में उकार बहुला अपभ्रंश का प्रयोग देखने को मिलता है । अपभ्रंश में प्रथमा एकवचन में उ विकल्प से लगता है । क्रिया रूप में अन्यपुरुष एकवचन में भी उ का प्रयोग होता है । प्रस्तुत कृति में प्रथमा एकवचन में ओ के स्थान पर उ देखा जा सकता है जैसे ( गाथा 28 ) ( गाथा 97 ) ( गाथा 97 ) ( गाथा 68 ) ( गाथा 67 ) 2. मागधी भाषा में प्रथमा एकवचन में ओ के स्थान पर 'ए' का प्रयोग किया जाता है । विवेकमंजरी प्रकरण में कवि आसड ने इसका प्रयोग किया है जैसे संवर दुक्खिउ अदूसिउ भणिउ भासिउ जिणिंदे जीवे सव्वे ( गाथा 15 ) ( गाथा 80 ) ( गाथा 80 ) 3. मागधी में तालव्य श का प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य प्राकृतों में केवल दन्त्य सकार का प्रयोग किया जाता है। विवेकमंजरी प्रकरण में 'एक' स्थल पर तालव्य शकार का प्रयोग देखने को मिला है। जैसे विशुद्धं ( गाथा 134 ) 4. द्य, र्य, र्ज का मागधी में 'य्य' में परिवर्तन होता है जबकि सामान्य प्राकृत इनका 'ज्ज' में परिवर्तन देखा जाता है। मागधी का प्रभाव इस रूप में भी देखा जा सकता है। जहां र्य का य्य में परिवर्तन हुआ है जैसे कार्य > कय्य कार्य > कज्ज 76 5. सामान्य प्राकृत में क्रू का परिवर्तन अ, इ, उ, और रि में किया जाता है। विवेकमंजरी प्रकरण में भी ये चारों परिवर्तन देखने को मिलते हैं। जैसे √ > अ ऋ > इ ऋ > उ ऋ > रि Jain Education International = = ( गाथा 49 ) मागधी ( गाथा 141 ) महाराष्ट्री = दृढश्री > दढसिरि (गाथा 43 ) हृदय >हिए (गाथा. 132 ) ऋषभ > उसह ( गाथा 15 ) ऋषभ रिसह ( गाथा 4 ) ऋद्धि रिद्धि ( गाथा 4 ) For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 110 www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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