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________________ (2) विषयवस्तु (सारांश) महाकवि आसड द्वारा रचित विवेकमंजरी एक प्रकरण ग्रन्थ है। उन्होंने स्वयं ग्रंथ समाप्ति पर इसे प्रकरण ग्रंथ कहा है। संसार में आया, जन्म लिया हुआ जीव यदि विवेकहीन हो तो सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में सक्षम नहीं हो सकता। इसलिए कवि ने विवेक को भूषण की संज्ञा देते हुए प्रत्येक मानव को उससे सुशोभित होने की आवश्यकता पर बल दिया है। विवेकमञ्जरी में रचनाकार ने तीनों मंगल के माध्यम से ग्रंथ की सफलता चाही है। आदि मंगल के रूप में मंगलाचरण, मध्यमंगल के रूप में चतुःशरण, गुणी जनों का गुणानुवाद और अन्तमंगल के रूप में माया, मोह आसक्ति को त्याग कर धर्म की शरण लेने की बात कही है। अतः रचनाकार ने ग्रंथ की विषय वस्तु को सुन्दर शैली में प्रस्तुत किया है जिसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है विवेकमंजरी के प्रारम्भ में महावीर स्वामी को वंदन किया गया है, क्योंकि वे विवेक रूप दीपक से युक्त होते हैं तथा जीवों को परमार्थ का ज्ञान कराते हैं। इसके पश्चात् विवेक की महिमा बतलायी गई है जो कर्मों को क्षयोपशम करने में सहायक है तथा मोक्ष का मार्ग दिखाने वाला है। विवेक के भूषण के रूप में मन की शुद्धि का उल्लेख किया गया इस शुद्धि के चार कारण बतलाकर उनका विस्तार से निरूपण किया गया है। वे चार कारण इस प्रकार हैं 1. चतुः शरणों की प्रतिपत्ति अर्थात् उनका स्वीकार 2. गुणों की सच्ची अनुमोदना 3. दुष्कृत्यों (पापों) की निन्दा 4. बारह भावनाएं (i) चतुः शरणों की प्रतिपत्ति अर्थात् उनका स्वीकार चार शरणों में क्रमशः अरिहंत देव, सिद्ध साधु और जिनके द्वारा निर्दिष्ट करुणापूर्ण और स्मरणीय धर्म को शरण कहा गया है। 24 तीर्थंकरों को और भविष्यत् कालीन 24 तीर्थंकरों को प्रणाम किया है। नंदीश्वर, अष्टापद, शत्रुजय ऊर्जयन्त एवं सम्मेद शिखर आदि शुभ तीर्थों को एवं लोक में स्थित जिनालय, अढ़ाई द्वीप एवं पन्द्रह कर्मभूमियों में स्थित साधु-महात्माओं, गणधरों, चक्रवर्ती और नव बलदेव आदि को, बाहुबली, सनत्कुमार, गजसुकुमाल, ढंढणकुमार स्थूलभद्र, स्कन्धक मुनि, चिलातिपुत्र, सुकोसल, वैसे ही श्रेष्ठ शालिभद्र का कथानक कहकर कवि कहता है-इस प्रकार कठोर नियमों को धारण करने वाले प्रज्ञावान वीर जिनेन्द्र भगवान महावीर को मैं नमन करता हूं। वज्रस्वामी, मुनिआर्य क्षमाश्रमण, सुदर्शन, दशार्णभद्र, प्रसन्नचन्द्र, कूरगडुअ महर्षि, अभयकुमार, जम्बूस्वामी, विष्णुकुमार यहां तक सभी मुनियों के प्रसंगानुसार दृष्टांत दिए गए हैं तथा भिन्न-भिन्न मुनियों का नामोल्लेख किया गया है। जैसे-शयम्भव, तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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