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आत्म-संवाद
सर्वसार उपनिषद्...
पद्यानुवाद
अनुवाद :-गोपाल भारद्वाज
ऐसे शरीर में अहंभाव जो वही जीव का है बंधन
और मोक्ष? जब अहंकार का हो जाए पूरा त्यागन।
(1) बंधन क्या ? क्या मोक्ष ? विद्या-अविद्या क्या ? जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति व तुरीय ये चारों भी होते क्या ? अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय पंचकोष ये होते क्या ? कर्ता, जीव, पंचवर्ग, क्षेत्रज्ञ, साक्षी कूटस्थ, अंतर्यामी क्या ? इसी प्रकार जीवात्मा, परमात्मा और माया भी होते क्या ?
(3)
अहं भाव को करती जो उत्पन्न अविद्या है वह ही। तथा अहं से मुक्त जो करे वह ही विद्या कहलाती।
(4) जब आत्मा सूर्यादि देवों की शक्ति से मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार व दस इन्द्रियों से इन चौदह अभिकरणों से शब्द-स्पर्शादि विषय ग्रहण करे
आत्मा ही ईश्वर, आत्मा ही जीव तदपि, जो भी होता है आत्मविहीन
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तुलसी प्रज्ञा अंक 110
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