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________________ आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अनुसार जिस समाज में अर्थ और पदार्थ का अभाव नहीं होता तथा उनका प्रभाव भी नहीं होता है, वह समाज स्वस्थ समाज होता है। यौगलिक युग में जीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति का अभाव नहीं था और पदार्थ का प्रभाव भी नहीं था। काल में परिवर्तन घटित हुआ। प्राकृतिक संसाधन आवश्यकता पूर्ति में असमर्थ हो गये। अभाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। उस स्थिति में यौगलिकों के मन में अधिकार और ममत्व की चेतना का विकास हुआ। अव्यवस्था शुरू हो गयी। इस अव्यवस्था ने कुलकर व्यवस्था को जन्म दिया। स्वच्छन्द-स्वतंत्र विचरण करने वाले प्राणियों ने पर के बंधन में रहना स्वीकार किया। मानव-सभ्यता के इतिहास का वह पहला दिन था जब स्वतन्त्रता-परतन्त्रता के आच्छादन में सुरक्षा खोजने लगी। अभाव की समस्या ने व्यक्ति की ममकार चेतना और अधिकार की मनोवृत्ति को परिपुष्ट किया, फलस्वरूप कुलकर व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी। कुलकर नाभि ने राज्य की व्यवस्था की और ऋषभ को राजा के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। कुलकर-व्यवस्था का अन्त राज्य-व्यवस्था के उदय से हुआ। यहीं से मानव सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास का अभिनव सृजन प्रारम्भ हुआ। राजा ऋषभ ने अपनी अतीन्द्रिय ज्ञान क्षमता के द्वारा अश्रुतपूर्व और अदृष्टपूर्व व्यवस्था का सूत्रपात किया। उन्होंने एक क्रान्ति की और अकर्मयुग का यौगलिक मानव कर्मयुग में पुरुषार्थ प्रधान बन गया। ऋषभ-राज्य की गाथा पुरुषार्थ की गाथा है। संस्कृति और सभ्यता के अभ्युदय की गाथा है। राजा ऋषभ के द्वारा नये युग का श्री गणेश हुआ। राज्य-व्यवस्था से अनजान आदिम युग ने राज्य का निर्माण किया । व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज एवं समाज से राज्य संस्था का उदय हुआ। व्यक्ति का समूहीकरण ही विभिन्न नामों से सम्बोधित होने लगा। राज्य की परिभाषा ___ मानव हृदय में विद्यमान सामूहिक भावनाओं की केन्द्रीय अभिव्यक्ति का नाम राज्य है। समुदाय का उत्कृष्ट रूप राज्य है। प्रत्येक समुदाय का यही उद्देश्य होता है कि वह सबके हित का सम्पादन करे। राज्य का उद्देश्य सर्वाधिक हित को सम्पादित करना है, अतः अन्य सब समुदाय उसमें अन्तर्गर्भित हो जाते हैं। अरिस्टोटल ने राज्य को परिभाषित करते हुये कहा-“राज्य कुलों और ग्रामों के उस समुदाय का नाम है, जिसका उद्देश्य पूर्ण और सम्पन्न जीवन की प्राप्ति है। रोमन साम्राज्य के प्रसिद्ध राजशास्त्री सिसरो ने राज्य को परिभाषित करते हुये कहा-“राज्य उस समुदाय को कहते हैं, जिसमें यह भावना विद्यमान हो कि सबको उसके लाभों का परस्पर साथ मिलकर उपभोग करना है" | The state is a numerous society united by a common sense of right and mutual participation in advantages mms तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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