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विचारभेद, आस्थाभेद और रुचिभेद के बावजूद आज पूरा जैन समाज एक मंच से विचार-समन्वय की नई शुरूआत करे । यह अवसर मात्र मिडियातंत्र तक सीमित न रह जाए। समाचार पत्रों की सुर्खियों में छपकर, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र बनकर, टी.वी. के अनेक चैनलों पर विज्ञापित होकर, ऊंचे मंचों पर बड़े लोगों के लम्बे भाषण होकर अपने दायित्व को पूर्ण विराम न लगा दें। सरकार की फाइलों में दर्ज 'अहिंसा वर्ष ' का संदेश सरकार के पैरों से चलकर सब तक पहुंचे । साथ-साथ हम भी स्वयं संदेशवाहक बनें। सामुदायिक चेतना के विकास का पूरा दायित्व समाज के चन्द प्रतिष्ठित लोगों के हाथों सौंपकर सफल परिणामों की प्रतीक्षा में न खड़े रह जाएं, क्योंकि यह समय सबके सामूहिक श्रम, समय, शक्ति और सोच के जुड़ने का है । शक्ति नियोजन और समय के साथ-साथ तैयारी करने का है।
विश्वशांति और अहिंसक समाज का सपना बिना अनुसन्धान, बिना प्रयोग और बिना प्रशिक्षण के संभव नहीं होता । आचार्य श्री महाप्रज्ञ बहुधा कहा करते हैं - काम छोटा हो या बड़ा, तैयारी पूरी होनी चाहिए। शिकार भले सियार का करना है पर तैयारी सेर के शिकार जितनी हो, तभी हम मकसद तक पहुंच सकेंगे।
'महावीर जयंती' का यह अवसर पूरे जैन समाज को द्विजन्मा बनाने का समय है। बीते समय की उन खामियों को भूलाने का है जिनके परिणाम आशाजनक नहीं रहे। आइए, कुछ नया करें नयी सोच, नये प्रयत्न, नई दिशा, नये प्रस्थान के साथ ताकि यह प्रयास सबका आश्वास, विश्वास और प्रकाश बन जाए ।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 110
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