SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षमता, रुचि और विकास के आधार पर श्रावक संबोध चरित्र निर्माण की एक प्रयोगशाला है, क्योंकि चरित्र के निर्माण में व्यक्ति और व्यवस्था दोनों का बदलाव जरूरी है। व्यवस्था बदले और व्यक्ति न बदले तो बुराइयों का प्रवेश रोका नहीं जा सकता। इसलिए हृदय परिवर्तन की बात बुनियादी तत्व है। श्रावक संबोध आत्मोदय की यात्रा है। आत्मोदय में आस्था, ज्ञान और पुरुषार्थ की मुख्य भूमिका रहती है। श्रावक संबोध में इन तीनों को प्राण ऊर्जा के रूप में प्रतिपादित किया है। आज की मूलभूत समस्या है-जीवन मूल्यों के प्रति अनास्था। श्रावक संबोध अनास्था, अस्थिरता और अविश्वास के कुहासे से व्यक्ति को बाहर निकालकर प्रकाश दिखलाता है। श्रावक कैसा हो? इसका एक मॉडल है श्रावक संबोध । इसमें जीवन का दर्शन और दृष्टि दोनों का समन्वित संदेश है। सिद्धान्त के साथ प्रयोग और परिणाम की बात भी कही है। कहा जा सकता है कि श्रावक संबोध का चिन्तन, मनन और आचरण बुराइयों की घुसपैठ को रोक सकता है। श्रावक संबोध आकार में छोटा है मगर अर्थवत्ता में बहुत बड़ा। इसकी परिक्रमा लगाते समय यही सोच उठती है- श्रावक की गीता और उपनिषद् है जिसकी हर गाथा सुबह शाम ऋचाओं की तरह श्रावक गाता है। चिन्तन-मनन कर अन्तर्मुखता के साथ कृतसंकल्प होता है। पुस्तक : श्रावक संबोध (सभाष्य) सम्पादक : साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा प्रकाशक : आदर्श साहित्य संघ, चुरू, (राजस्थान) मूल्य : ४५/- रुपये सम्पर्क : जैन विश्व भारती, लाडनूं सम्पादक-तुलसी प्रज्ञा जैन विश्व भारती संस्थान लाडनूं-341 306 (राजस्थान) तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 ATTIT MILINRNINY 91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy