________________
अव्याबाध सुख एवं परमानन्द में प्रतिष्ठापन मोक्ष है। इसकी प्राप्ति के लिए रत्नत्रय की साधना अनिवार्य मानी गयी है- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः 44
इसे ही हिन्दू शास्त्रों में भक्ति, ज्ञान और कर्म के रूप में स्वीकार किया गया है। बौद्ध दार्शनिकों की दृष्टि में शील, समाधि और प्रज्ञा की उपासना अनिवार्य है।
इस प्रकार भारतीय वांगमय में चारों पुरुषार्थों का विवेचन उपलब्ध है लेकिन मोक्ष को ही परमपुरुषार्थ के रूप में स्वीकार किया गया है।
सन्दर्भ ग्रन्थ :
1. शब्दकल्पद्रुम, खण्ड-3, पृ. 197
2. वाचस्पत्यम् खण्ड-5, पृ. 4379 3. आर्य जीवन दर्शन, पं. मोहनलाल महतो वियोगी, पृ. 279 4. तत्रैव पृ. 279 5. प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, डॉ. जयशंकर मिश्र, पृ. 258 6. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/543 1. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/543 8 . एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/543 9. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/549 10. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/574 11. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/579 12. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/577 13. एक बूंद एक सागर, जैन विश्व भारती, 3/563 14. ईशावास्योपनिषद्-1 15. ईशावास्योपनिषद्-15
16. ऋग्वेद 4.23.8-9, 10.81.1 17. ऋग्वेद 10.37.2., 9.113,5
18. बृहदारण्यकोपनिषद् 4.4.5 19. छान्दोग्योपनिषद् 1.1.10
20. कठोपनिषद्-प्रथमबल्ली एवं आगे 'यम-नचिकेता संवाद' 21. बृहदारण्यकोपनिषद्-चतुर्थ ब्राह्मण 1-14 22. मनुस्मृति 2.224 23. मनुस्मृति 7.100
24. विष्णुपुरण 1.18.21 25. सांख्यसूत्र 1.1
26. सर्वदर्शनसंग्रह पृ. 389 27. जैमिनीसूत्र 4.1.2
28. सर्वदर्शन संग्रह पृ. 762 29. सर्वदर्शन संग्रह पृ. 5
30. भागवतपुराण 4/20/24 31. ज्ञानार्गव 3/4
32. भगवती आराधना 1814 33. भगवती आराधना 1815
34. पद्मनन्दि पंचविशतिका 7.25 35. परमात्मप्रकाश 2.3
36. महाभारत कर्णपर्व 109.58 राजवार्तिक 9.2.3591.32 37. सर्वार्थसिद्धि एवं राजवार्तिकं 9.2
38. गोखले, इण्डियन थाट टू द एजेज, पृ. 25 39. महाभारत, उद्योगपर्व 72.23
40. गीता 7.11 41. अर्थशास्त्र 17
42. तत्वार्थसूत्र 10.2 43. समयसार, गाथा 288 पर टीका
44. तत्वार्थसूत्र 1
7600
TITLINITION तुलसी प्रज्ञा अंक 109
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org