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मात्र रस मिलता रहे, वही पुरुषार्थ है - नि:शेषदु:खोपशमलक्षितं परमानन्दैकरसं च पुरुषार्थ शब्दस्यार्थः128 चार्वाक स्त्री आदि के स्पर्श से उत्पन्न सुख को ही परम पुरुषार्थ मानते हैं - अंगनाद्यालिंगनादिजन्यं सुखमेव परम पुरुषार्थ : 129 भक्तिवादी आचार्यों की दृष्टि में भक्ति ही परम पुरुषार्थ है । उनकी दृष्टि में प्रभुचरण की स्मृति एवं चरणरज की प्राप्ति की मनुष्य का परम प्रयोजन है :
न कामये नाथ तदप्यहं क्वचित् न यत्र युष्मच्चरणाम्बुजासवः । महत्तमान्तर्हदायन्मुखच्युतो विधत्स्व कर्णायुतमेष मे वरः ॥
मुझे तो उस मोक्ष पद की भी इच्छा नहीं है जिसमें महापुरुषों के हृदय से उनके मुख द्वारा निकला हुआ आपके चरणकमलों का मकरन्द नहीं है - जहां आपकी कीर्ति कथा सुनने का सुख नहीं मिलता। इसलिए मेरी यह प्रार्थना है कि आप मुझे दस हजार कान दे दीजिये जिनसे मैं आपके लीला गुणों को सुनता रहूं ।
जैनदर्शन और पुरुषार्थ - जैन दृष्टि में पुरुषार्थ की प्रधानता है, इसलिए लौकिक एवं अलौकिक कोई भी क्षेत्र पुरुषार्थ से रिक्त नहीं हो सकता है। यहां पर भी पुरुषार्थ चतुष्ट्य- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की स्वीकृति दी गयी है तथा यह भी कहा गया है कि अर्थ और काम में सभी जीव रुचिपूर्वक प्रवृत्त होते हैं, अकल्याण - बन्धन को प्राप्त होते हैं तथा धर्म और मोक्ष को आश्रय लेने वाले कल्याण को प्राप्त करते हैं। इनमें से भी धर्म पुण्य रूप होने से मुख्यतः लौकिक कल्याण को देने वाला है, जो वस्तुतः बन्धन ही होता है । लेकिन मोक्ष पुरुषार्थ साक्षात्कल्याणप्रद है ।
जैन आगम ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर पुरिसक्कार' शब्द संयम के प्रति पराक्रम पौरुषाभिमान, साधिताभिमतप्रयोजन, पुरुषक्रिया आदि अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। संयम के प्रति चेष्टा करना पुरुषार्थ है - पौरुषं पुनरिह चेरिष्टतम् ।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चतुर्विध पुरुषार्थ का उल्लेख जैन ग्रन्थों में मिलता है : धर्मार्थकामाश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः । 31
काम और अर्थ को अशुभ माना गया है। इहलोक और परलोक के दुःख मनुष्य को अर्थ पुरुषार्थ के कारण भोगने पड़ते हैं, इसलिए अर्थ अनर्थ का कारण है, मोक्ष प्राप्ति में अर्गला के समान है
अत्थो अणत्थमूलं महाभयं मुतिपडिवंथो । 2
काम पुरुषार्थ अपवित्र शरीर से उत्पन्न होता है। इससे आत्मा हल्की होती है, इसका सेवन करने से आत्मा दुर्गति में जाती है। यह पुरुषार्थ उत्पन्न होकर अल्पकाल में नष्ट हो जाता है
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2000 AM
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