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प्रभेद स्वीकार करते हैं। उसमें पर्याय नैगम के अर्थ पर्याय नैगम, व्यञ्जन पर्याय नैगम और अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम, ये तीन भेद, द्रव्य नैगम के शुद्ध द्रव्य नैगम, अशुद्ध द्रव्य नैगम, ये दो भेद तथा तीसरे द्रव्य पर्याय नैगम के शुद्ध द्रव्यार्थ नैगम, शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम, अशुद्ध द्रव्यार्थ पर्याय नैगम, अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम, ये चार भेद स्वीकार करके नैगम नय को नौ प्रकार का कहा है। इसे हम निम्न चार्ट द्वारा समझ सकते हैं :
नैगमनय
(1) द्रव्य नैगम
(2) पर्याय नैगम
(3) द्रव्य पर्याय नैगम
(i) शुद्धद्रव्यनैगम (ii) अशुद्धद्रव्यनैगम
(i) अर्थ पर्याय नैगम (ii) व्यञ्जन पर्याय नैगम (iii) अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम
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(i) शुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम (ii) अशुद्ध द्रव्य अर्थ पर्याय नैगम (ii) शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम (iv) अशुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम
आचार्य विद्यानन्द सर्वप्रथम पर्याय नैगम के प्रभेद बतलाते हुए उनकी परिभाषायें बतलाते हैं। पर्याय नैगम नय (1) अर्थ पर्याय नैगम नय - एक वस्तु में दो अर्थ पर्यायों को गौण मुख्य रूप से जानने के लिए नय ज्ञान का जो अभिप्राय उत्पन्न होता है वह उसे अर्थ पर्याय नैगम नय कहते हैं । जैसे प्राणी का सुख संवेदन प्रतिक्षण नाश को प्राप्त हो रहा है। यहाँ सुख रूप अर्थ पर्याय तो विशेषण रूप होने से गौण है और संवेदन रूप अर्थ पर्याय विशेष्य रूप होने से मुख्यता को प्राप्त हो रही इष्ट है। अन्यथा इस प्रकार से उसका कथन नहीं किया जा सकता। भावार्थ यह है कि आत्मा की सुख संवेदन-सुखानुभूति क्षण-क्षण में उत्पन्न और नष्ट हो रही है। यह नैगम नय का एक उदाहरण है। इसमें सुख और संवेदन ये दोनों अर्थ पर्याय नैगम नय के विषय हैं। किन्तु इनमें से संवेदन नामक अर्थ पर्याय विशेष्य रूप होने से मुख्य रूप से नैगम नय का विषय है। इस प्रकार दो अर्थ-पर्यायों में से एक को मुख्य और एक को गौण करके जानना अर्थ पर्याय नैगम नय है।
54 AITINITIATITICIATIONITIIIIIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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