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आचार्य विद्यानन्दकृत नैगमनय तथा नैगमाभास के भेद-प्रभेद
जैन न्याय
कुमार अनेकान्त जैन
जैन परम्परा में प्रमाण के विवेचन से भी पहले नयों का विवेचन हुआ । अतः अनुयोग द्वार' तथा षट्खण्डागम' जैसे आगमों के प्राचीन अंशों में नयों की ही चर्चा अधिक विस्तार से उपलब्ध होती है । दार्शनिक जगत में सात नय प्रसिद्ध हैं जिनमें प्रथम नय 'नैगम' है । कषाय प्राभृत के टीकाकार वीरसेनाचार्य ने नैगमनय के तीन भेद किये। आचार्य विद्यानन्द ने इन्हीं तीन भेदों का विस्तार करते हुए नैगमनय के कुल नौ भेद कर दिये। इतना ही नहीं, उन्होंने इन भेदों के आभासों का भी परिचय दिया जो कि उनका जैन न्याय शास्त्र को मौलिक योगदान माना जायेगा । प्रस्तुत निबंध में हम इसी योगदान की चर्चा आचार्य विद्यानन्द के तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ग्रंथ के आधार पर करेंगे ताकि नय पर विचार करने वाले विद्वानों का ध्यान नैगम नय के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष की ओर भी जा सके।
नैगमनय भेद-प्रभेद
वीरसेनाचार्य (विक्रम की 8वीं शती) ने जयधवला में नैगम नय के द्रव्य नैगम, पर्याय नैगम और द्रव्य पर्याय नैगम ये तीन भेद माने हैं।' आचार्य विद्यानन्द (वि. 9वीं) भी इन तीन भेदों को स्वीकार करते हैं किन्तु वे इन तीनों का भी क्रमशः प्रभेद करते हुए कहते हैं कि द्रव्य नैगम दो प्रकार का है, पर्याय नैगम तीन प्रकार का है और तीसरा द्रव्य पर्याय नैगम चार प्रकार का है । तदनन्तर वे इन तीनों के भी तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2000 AM
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