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अनन्तकायिक त्वचा का लक्षण जिस मूल के काष्ठ की त्वचा मोटी होती है वह अनन्त कायिक त्वचा है। इसी प्रकार कंद, स्कन्ध और शाखा की त्वचा के लिए भी यही नियम है।
(प्रज्ञापना पद १ सू ४८/गा. ३०३३) अनन्त कायिक पत्र के लक्षण जिस पत्र में शिरायें गूढ़-छिपी हुई रहती हैं। पत्र सक्षीर और निक्षीर दोनों प्रकार के होते हैं। जिसका सन्धिभाग दिखाई नहीं देता, वह पत्र अनन्तकायिक है।
(प्रज्ञापना पद १ सू ४८/गा ३९) अनन्तकायिक का एक अन्य लक्षण जिस मूलादि का भेदन करते समय समान भंग हो जैसे केदार के उपरिवर्ती के पपड़ी में होने वाली समान होती है। उस वनस्पति के भेदन करने से उसके ग्रन्थि भाग में सघन चूर्ण उड़ता हुआ दिखाई देता है।
(प्रज्ञापना पद १ सूत्र ४८/गा ३८) प्रत्येक वनस्पति के लक्षण जिस वनस्पति के मूल, कंद, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज के विषम भंग होते हैं वह प्रत्येक वनस्पति है। (प्रज्ञापना पद १ सू ४८/गा. २०-२९) प्रत्येक वनस्पति की त्वचा के लक्षण जिस मूल, कन्द, स्कन्ध और शाखा के काष्ठ की शाखा पतली होती है वह प्रत्येक वनस्पति की त्वचा है। पुष्प के विषय में भी ग्रन्थकार ने एक विशेष संकेत दिया हैजलज और स्थलज पुष्प के वृन्तबद्ध और नालिकाबद्ध दो प्रकार हैं। ये संख्यात, असंख्यात
और अनन्तजीवी भी हो सकते हैं। नालिकाबद्ध पुष्प संख्यातजीवी होते हैं । थूहर के फूल में अनन्तजीव होते हैं।
(प्रज्ञापना पद १ सू ४८ गा. ४०, ४१) इसके बाद ग्रन्थकार ने कुछ प्रकीर्णक गाथायें दी हैं। उनमें उन वनस्पतियों का उल्लेख किया गया है जिसमें संख्यात और अनन्त जीवों के सन्दर्भ में कुछ विशेष बातें हैं, जैसे :पद्मकन्द, उत्पलिनीकन्द अन्तरकन्द, झिल्लिका ये अनन्तजीवी हैं इसके विस और मृणाल एकजीवी हैं। पद्म, उत्पल, नलिन, सुभग, सौगन्धिक अरविन्द, कोकनद, शतपत्र, सहस्रपत्र का वृन्त, बाह्य पत्र और कर्णिका तीनों का जीव एक होता है। आभ्यन्तर पत्र केशरा और भिंजा ये तीनों प्रत्येकजीवी हैं। वेणु, नल, इक्षुवाटिका, इक्षु, भमास, इक्कट, ऐरंड करकर सूंठ इनके पर्व, अक्षि और पर्व 38 AIMIMINATITIATTITITINITI ATI V तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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