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पर्वक वनस्पति में कल्लाण शब्द आया है। उसका अर्थ भी गरजन और अश्वकर्ण किया है। असकण्णी का अर्थ शालवृक्ष किया है। इससे लगता है कि ये तीनों एकार्थक हैं। जीविय शब्द साधारण वनस्पति में और जियंतिय शब्द हरित वर्ग में आया है। किन्तु दोनों एक ही वनस्पति है। एक प्रश्न : एक समाधान इस प्रकार ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका प्रत्येक और साधारण दोनों में उल्लेख हुआ है। प्रश्न यह उठता है कि एक ही वनस्पति का दो जगह उल्लेख क्यों? इसका एक समाधान यह है कि साधारण वनस्पति के भी वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली आदि भेद हो सकते हैं। दिगम्बर साहित्य में भी ऐसा उल्लेख मिलता हैप्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के होते हैं१. एक निगोद सहित २. दूसरे निगोद रहित
(कार्तिकेयानुप्रेक्षा मूल/१२८) तृण, वल्ली, छोटे वृक्ष, बड़े वृक्ष, मूल-कन्द, ये पांच भेद प्रत्येक वनस्पति के हैं। ये पांचों वनस्पतियां जब निगोद शरीर के आश्रित हों तो प्रतिष्ठित प्रत्येक कही जाती है तथा निगोद रहित हों तो अप्रतिष्ठित कही जाती है। दूसरा विकल्प यह है कि दो वर्गों में उल्लिखित एक ही नाम वाली वनस्पतियों में भेद भी हो सकता है। जैसा कि टीकाकार ने आमलग के लिए निर्देश किया हैआमलग शब्द को मूल सूत्र में बहुबीजक के रूप में स्वीकार किया है। वर्तमान में प्रसिद्ध आमलग बहुबीजक नहीं है, इसलिए टीकाकार ने लिखा हैदेशकाल की अपेक्षा से वनस्पति में भेद हो सकता है, इसलिए यहां लोक प्रसिद्ध आमलग का ग्रहण नहीं करना चाहिए किन्तु देश विशेष के आमलग का ही ग्रहण करना चाहिए। इससे यह बात स्पष्ट है कि देश काल की अपेक्षा से एक फल का स्वरूप भिन्न-भिन्न हो सकता है।
(प्रज्ञापना वृत्ति पत्र ३२) तीसरा विकल्प यह हो सकता है कि एक नाम की भिन्न-भिन्न वनस्पतियां भी हो सकती हैं। जैसे कण्ह वनस्पति का उल्लेख तीन जगह हुआ हैकण्ह-वल्लीवर्ग-पीपल, कण्ह-हरित वर्ग-तुलसी, कण्ह-साधारण-रक्तउत्पल ग्रन्थकार ने साधारण और प्रत्येक वनस्पति की एक पहचान दी है। अनन्तकायिक वनस्पति के लक्षण जिस मूल के समान भंग होते हैं वह मूल अनंतकायिक है। जिस कन्द के समान भंग होते हैं वह कंद अनन्तकायिक है। इसी प्रकार स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज आदि के लिए भी यही नियम है।
(प्रज्ञापना पद १ सू ४८ । गा १०-१९) तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NITITINITI ATIVALINITINITIV 37
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