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वनस्पति के जो बारह भेद किये गये हैं, क्या वे भेद साधारण वनस्पति के नहीं होते हैं? यदि होते हैं तो ग्रन्थकार ने ये भेद क्यों नहीं किए? जैन साहित्य के सिवाय किसी भी साहित्य में वनस्पति का प्रत्येक और साधारण विभाग नहीं मिलता। निघंटु आदि कोशों के आधार पर तो साधारण वनस्पति के भी एकास्थिक, बहुबीजक, लता, वल्ली, गुल्म, गुच्छ, जलरुह आदि अनेक भेद हो सकते हैं। साधारण वनस्पति का स्वरूप मियवालुंकि -(बड़ी इन्द्रायण) यह लता जाति की वनस्पति है। इसका फल तरबूज की भांति गोलाकार होता है। इसका रंग कच्ची अवस्था में हरा और पकने के बाद संतरे जैसा हो जाता है। गुदों के बीच हल्के-भूरे रंग के बीज होते हैं। वज्ज-यह शाक वर्ग की एक लता है। यह जमीन में बोई जाती है। लता पर समय-समय पर मिट्टी चढ़ाई जाती है। आश्विन, कार्तिक में मिट्टी खोद कर निकाली जाती है। इसके कन्द दो प्रकार के होते हैं- लालकन्द और श्वेतकंद । श्वेत कंद को शक्करकन्द कहते हैं। असकण्णी-शाल । यह बड़ा सरल वृक्ष होता है, मूल पृथ्वी में गहरी गई हुई मोटी होती है, पत्र घोड़े के कान के समान विशाल होते हैं। शिराएं जिनमें स्पष्ट दिखाई देती हैं। अवए-शैवाल, जलीय वनस्पति। दंती-गुल्म जाति की वनस्पति होती है। प्रायः जड़ से ही अधिक शाखाएं निकलती हैं। भंगी-इसका क्षुप सीधा ८ से १६ फीट तक ऊंचा होता है। फल बहुत छोटे और एक-एक बीज से युक्त होते हैं। सूरणकन्द-इसका क्षुप दृढ़ होता है। इसके नीचे बड़े-बड़े कन्द होते हैं। कंडरिया-रामचना। यह द्राक्षा कुल की बड़ी लता है। यह झाड़ियों, थूहर के वृक्षों पर खूब फैलती है। इस लता के नीचे लगभग ९ इंच का एक कंद बैठता है। इसी प्रकार ऐसे भी अनेक शब्द हैं जिनका उल्लेख प्रत्येक और साधारण दोनों वनस्पति में हुआ है। प्रत्येक और साधारण का संक्रमण अवए-जलरुह और साधारण दोनों में। छीर विराली-वल्ली वर्ग और साधारण दोनों में। पणए-जलरुह और साधारण दोनों में। सेवाल-गुल्म और साधारण दोनों में। असकण्णी-यह साधारण वनस्पति है। साल शब्द एकास्थिक वृक्ष के अंतर्गत आया है। 36 ATTITI LITIVITITITILI IIIIIIIIIIIIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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