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जैन-दर्शन
वनस्पति : एक विमर्श
व साध्वी विमलप्रज्ञा
षड् जीवनिकाय पर जिस सूक्ष्मता से विचार जैन-दर्शन में किया गया है, अन्यत्र नहीं। जो जीव व्यक्त हैं, चक्षुग्राह्य हैं उनका अस्तित्व स्वयं सिद्ध है। उनके जीवत्व की सिद्धि के लिए किसी दूसरे प्रमाण की अपेक्षा नहीं है। किन्तु जो अव्यक्त हैं, हलन-चलन करने की क्रिया से रहित हैं, जिनके जीवत्व की सिद्धि चक्षुग्राह्य नहीं है, उनमें जीवत्व स्वीकार करना जैन-दर्शन की अपनी मौलिक देन है। जैन-दर्शन पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति इन पांचों में जीवत्व स्वीकार करता है। इस संसार में जितने पदार्थ हैं, वे इन जीवों के व्यक्त शरीर हैं । वनस्पति में जीव हैं, यह बात वैज्ञानिकों की प्रयोगशाला से सिद्ध हो चुकी है। उनमें भी सुख-दुःख का संवेदन होता है। मनुष्य के अच्छे या बुरे विचारों से वे प्रभावित होती हैं। सांध्य टाइम्स पत्र में यही समाचार था कि पौधों की भी भावनायें होती हैं-जापान की एक खिलौना कम्पनी ने एक ऐसा उपकरण बनाया है जिससे पौधों की भावनाओं को जाना जा सकता है। इस कम्पनी ने प्लानटोन नामक उपकरण की बिक्री शुरू कर दी है। इस उपकरण में अनुभूति विषयक दो क्लिप लगे हैं जिसे पौधों की पत्तियों से जोड़ दिया है। इससे मस्तिष्क तरंगों जैसी एक विद्युत प्रतिक्रिया होती है जिससे उपकरण का बल्ब लाल या हल्के नीले रंग में जल उठता है। यह उपकरण संगीत, रोशनी और व्यक्ति की भावनाओं के अनुसार पौधों पर पड़ने वाले बाहरी प्रभावों से उसकी विद्युतीय गतिविधि में आए बदलाव को दर्शाता है।
जैन व्याख्या साहित्य में वनस्पति में पांचों इन्द्रियों का अस्तित्व है, इसका उल्लेख तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NAWATINI TITIVALINITIY 31
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