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इस प्रकार हर भाषा में, हर प्रदेश में, हर युग में सन्त-साहित्य की परम्परा सदा हमें समाजोन्मुख दिखाई दी। उसी का परिणाम है कि आज के युग में हमारे जीवन में हमने भी विनोबा और सन्त तुकडोजी, अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी और ठक्कर बाबा, बाबा आमटे और चिपको आन्दोलन के सुन्दरलाल बहुगुणा में उसी का साक्षात्कार देखा जिनकी दिव्यता मदर टेरेसा को, फूजी गुरुजी को, स्वर्गीय मार्टिन लूथर किंग को और अनेक समाजसेवियों को प्रेरित करते रहे हैं । सन्त वे दीप स्तंभ हैं जो युगों युगों तक इस अंधेरे से घिरे तूफानग्रस्त जीवन-समुद्र में हमारी जीवन-नौकाओं को बराबर मार्ग-दर्शन देते रहेंगे।
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INITALIV तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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