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आचारांग सूत्र में आता है-'साधना के महामार्ग पर वीर पुरुष ही चल सकते हैं और जैन पंचतंत्र में लिखा है कि 'साधु वह है जो अपकारी के प्रति भी उपकार करे।' वीरता अपने से कमजोर पर हाथ उठाने में नहीं, परन्तु पापी को भी क्षमा करने में है। भारतीय राजनैतिक सन्दर्भ में देखिये। हमारे पड़ौसी बाँगलादेश ने पाकिस्तानी फौजी ताकत के खिलाफ मुक्ति संग्राम छेड़ा। भारत ने क्या किया? उस सामरिक कार्यवाही में 9171 में तथा पहले भी हैदराबाद या गोआ के मुक्ति संग्राम में जैसी और जितनी सैनिक कारवाई आवश्यक थी, की। करीब एक लाख पाकिस्तानी युद्ध बंदियों को भारत में शरण दी, उन्हें सुरक्षित उनके जन्म-स्थानों को लौटा दिया। यह सच्चे वीर की अहिंसा है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जहां एक और इक्के-दुक्के आतंकवादी ब्रिटिशों पर या गोरों पर बम फेंकते रहे, अण्डमान में काले पानी की या फाँसी की सजा पाते रहे, उन सबकी बहादुर और शहादत व्यर्थ नहीं गई। पर बड़े पैमाने पर सर्वसाधारण जनता को अहिंसक अवज्ञा और असहयोगिता के लिए प्रेरित करने वाले गाँधी ने और बड़ा मार्ग अपनाया। प्रेमनु मारग शूरनुं छे' गुजराती सन्त-कवि ने गाया। गांधी ने उसे अपनी प्रार्थना का अंग बनाया। बार-बार गांधी ने कहा-'हमारी लड़ाई अंग्रेज व्यक्ति से नहीं, अंग्रेजी जालिम हुकूमत से हैं।'
बकौल इमर्सन ‘सन्त सौ युगों का शिक्षक होता है।' अब पंजाब को देखिये-सिख धर्म में सन्त सिपाही का आदर्श बखाना गया 'साधो मन का मान त्यागो"
इसी सन्दर्भ में गुरु नानक कहते हैं-केवल कह देने से न पुण्यात्मा बन जाते हैं, न पापी, किन्तु वे तुम्हारे कर्म हैं जिन्हें तुम अपने साथ लिखते जाते हो और तुम्हारे कर्म तुम्हारे साथ-साथ जाते हैं-तुम जैसा बोते हो वैसा खाते हो।
गुरु नानक ने भी लिखा कि-'असंख्य लोग मूर्ख और घोर अन्धे हैं, असंख्य पराया धन हरण करने वाले और चोर हैं । असंख्य लोग बलात्कारपूर्वक राज्य स्थापित कर लेते हैं, गला काटने वाले हत्यारे भी असंख्य हैं। असंख्य पापी हैं जिन्हें पाप करते हुए गर्व होता है। असंख्य बोलने वाले, असंख्य ही पड़े पड़े चक्कर काटते हैं । असंख्य गंदे लोग गंदी कमाई से पेट भरते हैं। असंख्य निन्दक पराई निन्दा करते और सिर पर पापों की गठरी लादते हैं। नानक कहते है, मैं तो तुझपर एक बार भी न्यौछावर होने लायक नहीं। अच्छा-भला वही है, जो तुझे भावे। हे निराकार! तू सदा सलामत रहता है।
दादूदयाल ने 'साध को अंग' में संत की परिभाषा इन दोहों में दीतुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NITI NITIVALINITITITI TINIW 23
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