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अपरिग्रह पर विचार करें तो उपभोग पर विचार होना चाहिए। उपभोग की सीमा हो । मैं इतने से ज्यादा वस्तुओं का उपभोग नहीं करूंगा।
सिद्धान्त है कि पदार्थ कम, उपभोक्ता ज्यादा । वस्तु कम है और खाने वाले ज्यादा हैं, संघर्ष अनिवार्य है। युद्ध भी अनिवार्य है । हिंसा अनिवार्य है, इसे रोका नहीं जा सकता। हम संग्रह पर विचार करने के पहले विचार करें उपभोग पर । उपभोग की सीमा उतनी हो जितना आवश्यक उपभोग होता है पानी का, आज के वातावरण में बिजली का, खाद्य वस्तुओं का, कपड़ों का और भी अनेक पदार्थों का । अनावश्यक उपभोग की कोई सीमा नहीं है । यदि कोई इच्छा-परिमाण की साधना करना चाहे, अपरिग्रह की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाना चाहे तो उसे संग्रह की सीमा करने से पहले उपभोग की सीमा करना आवश्यक होगा । उपभोग सीमित है तो पदार्थ की अपेक्षा सीमित हो जाएगी। पदार्थ की अपेक्षा सीमित है तो इच्छा अपने आप सीमित हो जाएगी। हम सीधा इच्छा को पकड़े और उसका परिमाण करें, बात बहुत कठिन है। उपभोग की लालसा प्रबल और उपभोग की पूर्ति के लिए पदार्थ की लालसा प्रबल और इच्छा का परिमाण करें तो एक अन्तर्द्वन्द्व पैदा होगा। इस समस्या पर अधिक आकृष्ट होना जरूरी है। पहला व्रत आज हम निर्धारित करें ।
श्रावक की आचार संहिता का पहला व्रत होना चाहिए- उपभोग का परिमाण । दूसरा व्रत होना चाहिए - अनर्थ हिंसा का परिमाण । मैं प्रयोजन के बिना हिंसा नहीं करूंगा । प्रयोजन जीवन की आवश्यकता है। वैसे प्रयोजन तो बहुत लम्बा चौड़ा हो सकता है किन्तु जीवन के लिए अनिवार्यता है, आवश्यकता है, उसकी पूर्ति के लिए हिंसा हो जाती है, उसके सिवाय नहीं करूंगा और उससे ज्यादा परिग्रह का संग्रह नहीं करूंगा । हम चलें कि हमें उपभोग की सीमा करनी है। अनावश्यक हिंसा से बचना है। उसके साथ तीसरा प्रयोजन है पदार्थ के संग्रह की सीमा । इतने से ज्यादा पदार्थों का संग्रह नहीं करूंगा। इतने परिमाण से ज्यादा धन नहीं रखूंगा। इसका फलित होगा - इच्छा का परिमाण । यह नहीं होता है तो इस अवस्था में परिग्रह की चेतना, ममत्व की चेतना व्यक्ति को आचार से दूर ले जाती है और सामाजिक हित और समाज व्यवस्था से भी दूर ले जाती है। प्रश्नव्याकरण सूत्र का एक सूत्र और महत्वपूर्ण है 'आलिय नियडि, साय समावोगे।' एक व्यक्ति झूठ बोलता है, मायाचार करता है, मिलावट करता है, झूठा तौल-माप करता है, नकली वस्तु बेचा करता है, ये सब किसलिए करता है? उत्तर में कहा जा सकता है कि वह परिग्रह के लिए करता है, अधिक धन अर्जन करने के लिए करता है ।
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\\\\\ तुलसी प्रज्ञा अंक 109
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