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________________ राष्ट्र के प्रति जैन समाज का योगदान 9 अधिकार सम्पन्न और सम्मानित नारी की सोच जैन समाज की क्रांतिकारी उद्घोषणा है। आज तो महिलाओं के अधिकारों पर बहस, आरक्षण के मुद्दे सरकारी घोषणाएं बन रही है। जैन समाज ने इसे अढाई हजार वर्ष पहले न केवल स्वीकारा, क्रियात्मक रूप भी दे दिया। राष्ट्र के लिए यह शक्ति-जागरण का सूत्रधार बना है। O जैन ग्रन्थों में कही गई षड्जीवनिकाय-संयमन की बात आज पर्यावरण प्रदूषण की ज्वलंत समस्या का समाधान बनी है। पदार्थ हो या प्राणी, सबके प्रति अहिंसा, समता और अभय की आश्वस्ति आवश्यक है। असीमित इच्छाओं के संयमन की बात कहकर जैनों ने पर्यावरण सुरक्षा में प्रेरणा दी है। भोगवादी मनोवृत्ति पर अंकुश लगाया है। जैनधर्म में तो निषेधात्मक सोच तक पर नियंत्रण लगाकर वैचारिक प्रदूषण फैलाने से भी हमें रोका है। ) जैन समाज द्वारा व्यक्तिशः एवं स्वयंसेवी संगठनों द्वारा साधर्मिक वात्सल्य के प्रयोग राष्ट्रीय स्तर पर किये जाते रहे हैं। प्राचीन काल में दक्षिण भारत में जैन समाज ने सामाजिक स्तर पर शिक्षा, चिकित्सा, जीविका और आश्वासन के रूप में चार प्रकार के दान की परम्परा विकसित की, जिसे ज्ञानदान, औषधिदान, चिकित्सादान और अभयदान कहा जाता है। जैन समाज ने साधर्मिकता का जीवन्त आदर्श प्रस्तुत किया। ऐसा प्रयास किया कि समाज में कोई व्यक्ति भूखा, बीमार, निरक्षर और भयाक्रान्त न रहे। इस उपक्रम से सहज लोकजीवन से जैन संस्कृति जुड़ती गई। प्राकृतिक एवं राष्ट्रीय आपदाओं में खुले दिल से जैन समाज ने सहयोगी हाथ बढ़ाया है। O राष्ट्र का मुख्य आधार है व्यवसाय। जैन समाज ने इस दृष्टि से प्रभावी भूमिका निभाई है। हर क्षेत्र में आचार-विचार-व्यवहार शुद्धि के साथ साधन-शुद्धि को अपनाया और अपने व्यवसायों की पैठ जमाई तथा अपनी प्रामाणिकता पर मोहर लगवायी। राष्ट्र के प्रति जैन समाज के योगदानों का प्रेरक इतिहास 21वीं सदी में आह्वान कर रहा है कि हम सिर्फ अपनी उपलब्धियों से समृद्ध अतीत पर गर्व ही न करें, आत्मचिन्तन और आत्मनिरीक्षण भी करें कि इस दिशा में हम कहाँ किस रूप में खड़े हैं? संख्या की दृष्टि से जैन समाज सीमित है फिर भी देश में अपना अस्तित्व और अस्मिता बनाए हुए है, क्योंकि हमारे पास भगवान् महावीर के उपदेशों की ऐसी गाथाएं और ऐसे सामयिक सटीक समाधान हैं जिन्हें सम्यग् सोच और सम्यग् पुरुषार्थ के साथ जीया जाए तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 AANANLAINIOLONLINITIONAINS 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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