SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थूल के माध्यम से सूक्ष्म का सन्धान एक भाव जगत भी है। विज्ञान, जैसा कि इसकी परिभाषा कहती है, केवल द्रव्य जगत पर केन्द्रित है; भाव जगत तो इसका विषय ही नहीं। यह सचमुच आश्चर्य की बात है। दूसरी ओर, जैन दर्शन केवल द्रव्य जगत का नहीं, केवल भाव जगत का भी नहीं बल्कि दोनों के ही सूक्ष्मतम रूपों से साक्षात्कार करने का उपक्रम है। अध्यात्म का विषय संकुचित अर्थ में केवल भाव जगत बनता है मगर जैन दर्शन पदार्थ जगत की गवेषणा के माध्यम से भाव जगत के रहस्यों को अनावृत्त करता है, और यही विज्ञान की तरह उसके बृहत् आकार का कारण है। जीव (Soul), अजीव (Matter), पुण्य (Virtie), पाप (Sin), आश्रव (Influx of Karma), संवर (Arrest of the influx of Karma), निर्जरा (Liquidation of Karma), बंध (Bondage) और मोक्ष (liberation)-ये नौ पदार्थ जैन अध्यात्म विद्या (Metaphysics) के मुख्य तत्व हैं। इनमें से प्रथम दो दृश्यमान स्थूल जगत से सम्बन्धित हैं। शेष सात अदृश्य मनोभाव हैं और सूक्ष्म जगत से सम्बन्धित है। सम्पूर्ण जैन दर्शन स्थूल और सूक्ष्म इन नौ तत्त्वों के वैज्ञानिक विश्लेषण पर केन्द्रित है। पदार्थ की शाश्वतता (Indestructibility of the matter), क्रिया और प्रतिक्रिया (Action and reaction), कारण और परिणाम (Caus and effect) एवं सापेक्षवाद और अन्तर्निर्भरता (Law of relativity) जैसे मूलभूत वैज्ञानिक सिद्धान्त जैन दर्शन की नींव में हैं और इस विश्लेषण के माध्यम हैं । केवल श्रद्धा प्रेरित और आस्था पर आधारित मान्यतायें जैन दर्शन में बहुत कम हैं। ___ इस लेख में विस्तार की जगह नहीं। फिर जैन दर्शन में जीव और अजीव, जो भौतिक पदार्थ है और जो विज्ञान का भी विषय है, के वर्गीकरण पर एक दृष्टि समीचीन होगी। स्थावर (Immobile) त्रस (Mobile) पृथ्वी जल ऑन वायु वनस्पति (Earth) (Water) (Fire) (Air) (Vegetation) निगोद (Group Suls. An infinite number of beings with common body and common respiration.) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 NRITHILITITIIIIIIIIIIIIIIITV 69 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy