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तुलसी प्रज्ञा अंक 108 अध्यात्म नियमो में ऐसी परिवर्तनशीलता नहीं है। यदि हिंसा बुरी थी तो आज भी बुरी है और भविष्य में भी बुरी रहेगी। यदि सामाजिक नियमों को अध्यात्म से जोड़ा जायेगा तो सामाजिक नियम भी अपरिवर्तनीय हो जायेंगे और मनुष्य जाति का विकास अवरुद्ध हो जायेगा।
3. अध्यात्म संबंधी नियम एक दृष्टि से अनुलंघनीय है। कोई कितनी भी छोटी से छोटी हिंसा करे, प्रकृति उसे दण्डित करती है। क्योंकि आध्यात्मिक नियमों का पालन व्यक्ति स्वेच्छा से करता है, इसलिए उन नियमों की पालना में तारतम्य रहता है । एक व्यक्ति केवल पशु-हिंसा को छोड़ता है। तीसरा महाव्रती स्थूल-सूक्ष्म सभी प्रकार की हिंसा को छोड़ देता है। यह क्रम व्यक्ति की संकल्पशक्ति की दृढ़ता पर निर्भर करता है।
सामाजिक नियम दो भागों में बंटे हैं। कुछ नियम कानून की पकड़ में आते हैं, कुछ कानून की पकड़ में नहीं भी आते हैं। जो नियम कानून की पकड़ में आते हैं उनमें व्यक्ति के पास विकल्प नहीं है। उदाहरणत: चोरी करना कानूनी अपराध है। कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि उसने केवल अमुक-अमुक प्रकार की चोरी का त्याग किया है और अमुक चोरी करने की छूट रखी है। चोरी न करना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर नहीं करता। यह नियम समाज के द्वारा उस पर लागू कर दिया गया है। चाहे वह इस नियम को पसन्द करे या न करे। इसलिए इस प्रकार के नियमों में तरतमता नहीं होती। अध्यात्म में जैसा भेद अणुव्रत और महाव्रत का है वैसा भेद कानून में नहीं होता कि अमुक व्यक्ति कानून का अंशतः पालन करेगा और अमुक व्यक्ति कानून का पूर्णतः पालन करेगा। कानून का पालन सभी को पूर्णत: ही पालन करना होता है।
समाज के कुछ नियम अवश्य ऐसे होते हैं जो कानून की पकड़ में नहीं आते। उदाहरणत: अपने से बड़ों का अभिवादन करना चाहिए-यह शिष्टाचार है, कानून नहीं है। इस प्रकार के नियमों की अनुपालना में तारतम्य रहता है। कोई अधिक शिष्ट होता है, कोई कम शिष्ट होता है और कोई अशिष्ट भी होता है।
__अध्यात्म के नियम क्योंकि स्वैच्छिक हैं अत: उनकी अनुपालना के लिए व्यक्ति को समझा-बुझाकर प्रेरित तो किया जा सकता है किन्तु लालच देकर या भय दिखाकर उन नियमों की अनुपालना करवाना उचित नहीं। यदि कोई नियम ऐसा हो जिसकी अनुपालना अनिवार्य समझी जाय तो उसे कानून के अन्तर्गत डाल देना उचित है।
4. अध्यात्म का मूल सिद्धान्त यह है कि व्यक्ति अपने सुख-दुःख का निर्माण स्वयं करता है-'अप्पा कत्ता विकत्ता य सुहाण य दुहाण य'। इस सिद्धान्त के अनुसार मैं किसी 38 ADITIONOTITITIONINITITITIVINV तुलसी प्रज्ञा अंक 108
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