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________________ धर्म और कर्त्तव्य : आचार्य भिक्षु की दृष्टि में युद्ध के अपने नियम हैं, उन नियमों का पालन करना सैनिक का धर्म है। यदि सैनिक उन नियमों का उल्लंघन करता है तो वह कर्त्तव्य से च्युत होता है। वस्तुस्थिति यह है कि पाप-पुण्य की जानकारी का स्रोत आगम है। क्योंकि पापपुण्य का संबंध नरक-स्वर्ग से है और नरक या स्वर्ग प्रत्यक्ष या अनुमान का विषय नहीं है। इसके विपरीत सामाजिक, राजनैतिक अथवा आर्थिक संस्थाओं का विषय प्रत्यक्ष है। उन संस्थाओं के नियम किसी आगम प्रमाण के आधार पर नहीं बनते, प्रत्युत् पारस्परिक विचारविमर्श के आधार पर बनते हैं। विचार विमर्श के द्वारा उनमें परिवर्तन भी होता रहता है। ऐसी हर लौकिक संस्था का एक संविधान होता है अथवा एक नियमावली होती है। उन नियमों का पालन करना उचित माना जाता है और उन नियमों का उल्लंघन करना अनुचित। उदाहरणत: राष्ट्र को लें। भारत का एक संविधान है। उस संविधान का आधार आगम नहीं है। उस संविधान में समय-समय पर परिवर्तन भी होते रहे हैं। ये परिवर्तन संसदीय विचार विमर्श के अनन्तर होते हैं। भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह उस संविधान का पालन करें। संविधान का उल्लंघन करने पर वह न्यायालय के द्वारा दंडित भी होता है। राष्ट्रीयता के संदर्भ में हम किसी नागरिक के आचरण का मूल्यांकन इस आधार पर करेंगे कि उस नागरिक का आचरण संविधान के अनुकूल है या संविधान के प्रतिकूल। जैन आगमों में इसे राष्ट्र-धर्म कहा गया है। कोई व्यक्ति राष्ट्रीय कर्त्तव्य का पालन करता है या नहीं, इसकी जांच संविधान के आधार पर होगी, आगम के आधार पर नहीं। कई राष्ट्रों में ऐसा निर्णय ले लिया गया है कि उस राष्ट्र के कानून किसी सम्प्रदाय विशेष के शास्त्रों के अनुसार होगें। ऐसे राष्ट्रों को मजहबी अथवा थियोक्रेटिक राज्य कहा जाता है। उदाहरणत: पाकिस्तान इस्लामिक देश है वहां यह प्रयत्न किया जाता है कि कानून शरीयत अथवा कुरान के अनुसार बने। इसके विपरीत भारत एक सम्प्रदाय निरपेक्ष राष्ट्र है। यहां का कानून किसी एक सम्प्रदाय विशेष के शास्त्रों के अनुसार नहीं बनता है। इन दो प्रकार की राज्य-प्रणालियों में थियोक्रेटिक राज्य में एक संप्रदाय विशेष के अनुयायियों को प्रथम श्रेणी का मान लिया जाता है जबकि शेष संप्रदाय के अनुयायी द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनकर रह जाते हैं। इसके विपरीत सम्प्रदाय निरपेक्ष राज्य में सभी समुदाय के मानने वाले नागरिकों के प्रति समानता का व्यवहार किया जाता है। स्पष्ट है कि मजहबी राज्य में नागरिकों के बीच भेदभाव किया जाता है। भगवान महावीर ऊंच-नीच की भावना के विरुद्ध थे, ‘णो हिणे णो अइरित्ते'। सम्प्रदाय के आधार पर राज्य एक नागरिक और दूसरे नागरिक के बीच भेदभाव करे, यह जैन तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 AIIMINATIONITITITION 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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