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भू-भ्रमण भ्रान्ति और समाधान कहते हैं कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य मण्डल परिभ्रमण करता है। दूसरे पक्ष का समर्थन अर्थात् पूर्वपक्ष का खण्डन पाश्चात्य परवर्ती आचार्यों तथा कतिपय भारतीय विद्वानों द्वारा किया गया है। सोलहवीं शती के पाश्चात्य विद्वान् कोपर निकस गैलेलिओं आदि विभिन्न प्रमाणों के माध्यम से पृथ्वी को चर तथा सूर्य को स्थिर सिद्ध करते हैं। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान् आर्डनवुड की मान्यता है कि पृथ्वी ध्रुवों की तरफ करीब चपटी नारंगी के आकार की घूमती हुई है। आपने यह भी कहा कि जैसे चन्द्रमा पृथ्वी के सर्व ओर घूमता है वैसे सूर्य के सर्व ओर पृथ्वी घूमती है। इसके साथ ही आपने यह भी सिद्ध किया कि पृथ्वी सूर्य की प्रदक्षिणा में प्रति सैकिण्ड १८.५ मील दौड़ती है और सवा तीन सौ पैंसठ दिन में प्रदक्षिणा करती है। एक अन्य पाश्चात्य आचार्य जौन मार्डच भी आर्डनवुड का समर्थन करते हुए कहते हैं कि पृथ्वी की परिधि चौबीस हजार नौ सौ मील चौबीस घण्टे में अर्थात् एक हजार सैंतीस मील तथा प्रति मिनट सत्रह मील पृथ्वी घूमती है। इसके साथ ही साथ जौन मार्डच साहब ने यह भी उल्लेख किया है कि पृथ्वी की घूम की सतह साढे छयासठ डिग्री का कोण बनाती है और उत्तरायन दक्षिणायन साढ़े तेईस डिग्री से अधिक नहीं झुकती। इनके अतिरिक्त कुछेक भारतीय विद्वान् आर्यभट्ट अभयचरन मुकरजी तथा एस.ए. हिल साहब की भी यही मान्यता है कि सूर्य की प्रदशिक्षा पृथ्वी गोलाकार रूप में नहीं, अण्डाकार में देती है। इस प्रकार इस पक्ष का समर्थन करने वाले समस्त विद्वान् पृथ्वी को घूमती हुई तथा सूर्य को स्थिर मानते हैं।
उपर्युक्त पक्षों पर संक्षिप्त अध्ययन करने के उपरान्त मस्तिष्क में यह प्रश्न उठना अनिवार्य हो जाता है कि जहां दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी प्रामाणिकता प्रस्तुत करते हों, वहाँ कौन-सा पक्ष सार्थक, सटीक, उपयुक्त एवं ग्राह्य है?तर्क विवेचन के धरातल पर तटस्थता के दर्पण में झाँककर इस पर यदि सम्यक् अध्ययन-मनन किया जाये तो यह कहना आश्चर्य न होगा कि पाश्चात्य विद्वानों ने एक स्वर से जिसका समर्थन किया अर्थात् पृथ्वी सूर्य के चारों ओर निरन्तर परिभ्रमण कर रही है, वह भ्रमपूर्ण एवं अनुपयुक्त ठहरता है।
प्रस्तुत निबन्ध के दूसरे पक्ष मानने वाले विद्वानों ने अपने-अपने कथन की जो पुष्टियां की हैं, वे किस प्रकार से अग्राह्य एवं अनुपयुक्त ठहरती हैं, उनका अतिसंक्षिप्त तर्क पूर्ण वर्णन हम जैनागम के माध्यम से यहां प्रस्तुत करेंगे।
पाश्चात्य विद्वान् आर्डनवुड पृथ्वी को गोल, दोनों तरफ सिरों पर चपटी नारंगी के आकार की घूमती हुई मानते हैं जैसा कि उपर्युक्त विवेचित है। किन्तु ऐसा वास्तविक रूप है नहीं, क्योंकि गोलाकार पर पानी समस्थल रूप में नहीं ठहर सकता।
कारण-गोलाकार में परिधि में ऊँचा-नीचा पाया जाता है। आर्डनवुड का कथन है तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 IIIIIII IIIIIIIIIIIIIIIV 25
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