SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भू-भ्रमण भ्रान्ति और समाधान जैन भूगोल आज के तार्किक तथा वैज्ञानिक युग में धर्म की एक सुदीर्घ परम्परा, उसकी समस्त मान्यताएं, क्रियाएं तभी स्थिर रह सकती हैं जब व्यक्ति अथवा उसका प्रतिबिम्ब समाज धर्म में व्यंजित मूल आत्मा को अपनी ज्ञान- तर्कणा शक्ति के माध्यम से समझने का प्रयास करें। जैन-धर्म की मान्यताओं, सिद्धान्तों व क्रियाओं का सम्यक् अध्ययन कर लेने के उपरान्त यह सहज में ही कहा जा सकता है कि यह धर्म परम वैज्ञानिक, स्पष्ट, व्यावहारिक, जीवनोपयोगी तथा प्रकृति अनुरूप है, इसलिए यह चिरन्तन व शाश्वत है । जैन-धर्म से अनुप्राणित समस्त साहित्य आगम कहलाता है। आगमों में जहां धर्म, दर्शन, इतिहास, संस्कृति, कला, विज्ञान आदि का तलस्पर्शी विवेचन है वहां भूगोल, खगोल, ज्योतिष सम्बन्धी बहुविध किन्तु महत्त्वपूर्ण मान्यताएं भी निरूपित हैं। यह कहना अतिशय युक्त न होगा कि इस विश्व में ऐसा कोई भी विषय नहीं है जो जैनागमों में वर्णित न हो। इसका मूल कारण है कि आगम जिनेन्द्र वाणी द्वारा दिव्य ध्वनि के माध्यम से निःसृत होकर मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यव ज्ञान के धारक गणधरों द्वारा संकलित है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी - मार्च, 2000 डॉ. राजीव प्रचंडिया प्रस्तुत निबन्ध में जैन भूगोल पर आधारित भू - भ्रमणः भ्रान्ति और उसका समाधान नामक बहुचर्चित किन्तु सामयिक एवं उपयोगी विषय पर चर्चा करना हमारा मूल अभिप्रेत है । Jain Education International For Private & Personal Use Only 23 www.jainelibrary.org
SR No.524602
Book TitleTulsi Prajna 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy