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तुलसी प्रज्ञा अंक 108 0 जैन समाज महिलाओं के विकास, स्वतंत्र व्यक्तित्व निर्माण पर खुला और उदात्त चिन्तन
करे। क्योंकि आज देश को ऐसी महिला-शक्ति चाहिए जिसमें ब्राह्मी-सुन्दरी जैसा उद्बोधन देने का साहस हो। दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी जैसी विधायक सोच हो। जिसमें क्रांति की आग भी हो और संतुलन का पानी भी। बुराइयों से लड़ने की ताकत भी हो और अच्छाइयों को जड़ें देने का कौशल भी। इसलिए दहेज प्रथा की त्रासदी का अन्त हो। शिक्षा का खुला माहौल मिले। नारी के प्रति शोषण, अत्याचार, अन्याय, अनीति के नाम पर तलाक, वैधव्य-अपमान, आत्मदाह, भ्रूणहत्या, बलात्कार, मॉडलिंग, घर से भाग जाने की वारदातें, स्वार्थी दरिन्दों द्वारा लड़कियों का विक्रय, कॉल गर्ल बना देने की मजबूरियां जैसे मुद्दों पर अंगुली निर्देश जरूरी है। समाज सम्मत ऐसे ठोस निर्णय लिए जाएं जिन्हें सरकार भी मान्य करे और सहयोग दे प्रतिबद्धताओं की सफलता में। जीवन समस्यासंकुल है। भले वो समस्या राष्ट्रीय हो या सामाजिक, धार्मिक हो या व्यावहारिक, संगठन की हो या एक व्यक्ति की। आज जीने के लिए समाधायक, स्वस्थ, परिणामी जीवन-शैली की जरूरत है। श्रमण-परम्परा के आचार-प्रधान तत्त्वों को समाविष्ट करते हुए जैनों के लिए आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने नव आयामी जैन जीवन-शैली के फलितों का प्रतिपादन किया है।
स्वस्थ शरीर, एकाग्र मन, संयमित इन्द्रियां और विशुद्धभाव इस जीवन शैली के साथ जब जुड़ जाएंगे तब विश्वास है कि समाज का हर घटक राष्ट्रीय हितों में योगदान देता रहेगा और अपने दायित्वों तथा कर्तव्यों का पालन करता हुआ राष्ट्रीय समस्याओं में स्वयं समाधान बनेगा। प्रस्तुत विषय के सन्दर्भ में जैन जीवन-शैली का संवाद ही शेष सारी बातों का निष्कर्ष है1. सम्यग् दर्शन जिसका फलित होगा
सम्यग् दृष्टिकोण का विकास, विधायक चिन्तन का विकास, कषायों का उपशमन,
सत्य की प्राप्ति। 2. अनेकान्त जिसका फलित होगा
सापेक्ष चिन्तन, समन्वयात्मक मनोवृत्ति, विवादास्पद प्रसंगों में सामञ्जस्य स्थापित
करने की मनोवृत्ति का विकास। 3. अहिंसा जिसका फलित होगा
संवेदनशीलता का विकास, प्राणी मात्र के प्रति आत्मानुभूति, मैत्री और करूणा का
जागरण, पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम । 10 ATTRINITION
ANTIVITITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 108
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