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राष्ट्र के प्रति जैन समाज का योगदान 4. समण-संस्कृति समन, शमन और श्रमण की साधना । इस जीवन-शैली का फलित होगा
मानवीय एकता, जातीय घृणा और छुआछूत की समाप्ति, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व,
सन्तुलित आहार, स्वावलम्बन का विकास। 5. इच्छा परिमाण जिसका फलित होगा
अर्जन के साथ विसर्जन, स्वस्थ समाज की संरचना और अनासक्तभाव का उदय। 6. सम्यक् आजीविका जिसका फलित होगा
व्यवसाय-शुद्धि, प्रमाणिकता। शराब आदि मादक तथा मांस, मछली, अण्डा आदि अभक्ष्य पदार्थों के व्यापार का वर्जन, तस्करी वर्जन, शस्त्रों के व्यवसाय का वर्जन,
जंगलों की कटाई का वर्जन। 7. सम्यक-संस्कार जिसका फलित होगा
अभिवादन तथा पत्र व्यवहार आदि में 'जय जिनेन्द्र' का प्रयोग, गृह सज्जा आदि में जैन संस्कृति सूचक मित्रों को प्राथमिकता, जन्म विवाह आदि अन्य उत्सवों पर सादगीमय
सजावट और प्रोग्रामों का संयोजन/आयोजन। 8. आहार-शुद्धि और व्यसन-मुक्ति जिसका फलित होगा
स्वस्थ एवं सन्तुलित जीवन, शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक स्वास्थ्य में वृद्धि,
अपराधी मनोवृत्ति से बचाव। 9. साधर्मिक वात्सल्य जिसका फलित होगा
जन-जन में अहिंसा के प्रति आकर्षण, जातीय सद्भाव, साम्प्रदायिक सद्भाव का विकास।
जैन जीवन-शैली का एक समवाय यह भी है कि श्रावक प्रतिदिन नौ नियमों के प्रति जागरूक रहे। यह जागरूकता न केवल अव्रत से बचाएगी अपितु ऐसा राष्ट्रीय व्यक्तित्व निर्मित करेगी जो भावी पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा पथ बन जाएगा। आचार्य श्री तुलसी ने कहा
"खाद्यों की सीमा, वस्त्रों का परिसीमन, पानी बिजली का हो न अपव्यय धीमन्। यात्रा-परिमाण, मौन, प्रतिदिन स्वाध्यायी, हर रोज विसर्जन अनासक्ति सुखदायी। हो सदा संघ-सेवा सविवेक सफाई,
प्रतिदिवस रहे इन नियमों की परछाई।" (श्रावक संबोध) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000
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