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________________ दुधमुहे बच्चे की तरह या महाज्ञानी की तरह महज हैं । मुग्ध हैं श्रद्धे ! मुग्धान प्रणयसि शिशून् दुग्धदिग्धास्यदत्तान भद्रानज्ञान वचसि निरतांस्तर्कवाण र दिग्धान् । विज्ञांश्चापि व्यथितमनसस्तकं लब्धावसादा तर्केणामा न खलु विदितम्तेऽनवस्थान हेतुः ॥" संबोधिकार महाकवि महाप्रज्ञ सहजानन्द की व्याख्या में ही तल्लीन दिखाई पड़ता है । महाकवि का जीवन-लक्ष्य है...मह न आनन्द की प्राप्ति । सहजानन्द की व्याख्या करते हुए कवि कहता है ---- नानुभूतिश्चिदानन्द इन्द्रियाणामगोच: । वितर्यो मनमा नापि स्वात्मदर्शन संभवः ।। चिदानन्द (सहजानन्द) का कभी अनुभव नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह इन्द्रियों का विषय नहीं है, मन की तर्कणा से परे है। आत्मसाक्षात्कार से ही उसका प्रादुर्भाव होता है । चन्दनबाला सहजतया प्रभुचरणों में अपना मर्वस्व समर्पित कर प्रभु की ही हो जाती है.-- श्रद्धापूता समजनि सती चन्दना वन्दनीया भक्तिस्नातोऽगजनि भगवान् भावनापूर्त्यबन्ध्यः ॥" महाप्रज्ञकृत 'स्तुतिचक्रम" के अनुशीलन से यह तथ्य 'सौन्दर्य बोध के लिए सहजता आवः पक है' और अधिक स्पष्ट हो जाता है। आचार्य-स्तुति में अपने गुरुचरण की शरणगति के चित्रण क्रम में यह साफ परिलक्षित होता है कि एक शिष्य अपने गुरुचरणों में किस प्रकार महजरूप से शरणागति ग्रहण कर धन्य हो जाता है वाणी पवित्रं विदधाति कर्ण स्तुती रसज्ञां नयनं च मूत्तिः परं तु सर्वोत्तमनुत्तमाङ्ग पुनाति पुण्यश्चरणस्तवासी .।'' आसूं का सामर्थ्य जगत्प्रसिद्ध है। कितना बल होता है उसमें । बड़े-बड़े महारथी वीर भी आंसू की धारा में इस प्रकार बह जाते हैं कि उनका कहीं कोई पता भी नहीं चलता है। इनका महज प्रवाह कितना वेगवान् है-देखें चन्दनबाला के यहां आकर--- चित्रा शक्तिः सकल विदिता हन्त युष्मासु भाति, रोद्धं यान्नाक्षत पृतना नापि कुन्ताग्रमुग्रम् । खातं गर्ता गहनगहनं पर्वतश्चापगाऽपि मग्ना: सघो वहति विरलं तेऽपि युष्मत्प्रवाहे ॥२१ आंसुओं ! जिन्हें सेना, भाले की पैनी नोक खदान, गड्ढा घोर जंगल, पहाड़ और नदियां भी रोकने में ससमर्थ हैं, वे तुम्हारे लघु-प्रवाह में सहसा डूब जाते हैं। तुम्हारे में कोई अद्भुत शक्ति है, इसे सब जानते हैं । तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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