SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपां तो गुरूदेवां री दृष्टि अराधां, विष पी पीयूष उकार साधना साधा। बच्चां युवकां नैं दृढ़ता स्यूं समझावो। मत भूल चक ओ दुर्लभ बगत गमावो ।।"२ शिक्षा जलस्यं जन-दुध उफाण मिटयो है, सदियां रो सारो सहज्यां फंद कटयो है । अत्यधिक सुखद परिणाम सामने आयो, तेरापंथ रो जश-झंडो जग फहरायो । __(मगन चरित्र पृष्ठ ६०,६१) रौद्र रस का एक उदाहरण देखिए-गज सुकुमाल मुनि दीक्षा ग्रहण कर भगवान अरिष्टनेमि से आज्ञा लेकर उसी दिन आत्म कल्याण की भावना से श्मसान में जाकर भिक्ष की बारहवीं प्रतिमा को स्वीकार करते हैं। श्मसान का दृश्य कैसा होता है । आचार्यश्री के शब्दों में उसका चित्रण [चन्दन की चुटकी भली में] इस प्रकार जंगल की झंकृत झोय-झांय, शव जल चिता में सांय सांय । अधजल्या मृतक है पड्या, गीध चांचां स्यूं छोले छाल ।"१ है पड़ी हड्डियां ढेर ढेर, फिरता फेरू कर फेर-फेर । फंफेर कलेवर कहीं शुनी-सुत खावं खोद निकाल ॥२ नर-मुंडमाल धर प्रेम फिर, मिल अट्टहास निरहेत कर । कायर नर को कमजोर कालजो होवे देख दुडाल ॥३ डायणियां घूमै डगर-डगर, मानव शव ढूंढे टगर-टगर । भर-भर खप्पर जोगणियां, बावन री रहै खुशहाल ॥"४ विस्मय रस का एक उदाहरण देखिये--- बाहुबली गृह-त्याग कर जंगल में एकाकी ध्यानस्थ खड़े हो गये। एक वर्ष बीत गया पर उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। साध्वी ब्राह्मी और सुंदरी उन्हें प्रतिबोध देने के लिए आती हैं और कहती है-वीरा ! छोड़ो गज-असवारी । ___इन शब्दों को सुनकर बाहुबाली को अत्यधिक विस्मय हुआ। वे क्या सोचते हैं । आचार्यश्री के शब्दों में-- मत, मतंग, तुरंगमा रे छोड़ अकिंचनता थारी । पियो न पाणी, कियो न भोजन, सूखी काया री क्यारी। फिर भी म्हारी गज असवारी. भारी मन स्यूं भावुकपण स्यं विस्मित बाहुबल भारी । मैं पार करी स्थितियां सारी ।। (चंदन की चुटकी भली, पृष्ठ २८) भयानक रस का उदाहरण देखिए-राजस्थान में गर्मी की ऋतु कितनी भयंकर होती है। जब लूएं चलती हैं तब तो उसकी भयंकरता और बढ़ जाती है । आचार्यश्री ने ऋतु की भयंकरता का चित्रण कालूयशोविलास में इस प्रकार किया है४५८ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy