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ज्येष्ठ महीनो ऋतु गरमी नो, मध्यम सीनो हठ-भीनो । लू री झालां अति विकराला, वहिन ज्वाला ज्यू चोफालां। भू ज्यूं भट्टी तरणी ताप, रेणू कट्ठी तनु संताप । अजिन रू अट्ठी मट्टी व्यापै, अति दुरघट्टी घट्टी मापै । स्वेद निझरणां रूं रूं झारै, चीवर चरणां लुह-लुह हार।
अंगे उपेड़ पुणसी-फोड़ा, भू पे उघेड़ ज्यूं भूपोड़ा । राजस्थान की लू कितनी भयंकर होती है । आचार्यश्री के शब्दों में
लू लागी नागी घणी, सागी आगी रूप। भयानक रस का एक और उदाहरण देखिए
जयाचार्य जब लाला लिछमणदासजी से बालक माणक को दीक्षा की अनुमति देने के लिए कहते हैं तब लाला लिमछणदासजी बालक माणक की शारीरिक स्थिति और साधु जीवन की कठिनाइयों का वर्णन करते हैं। आचार्यश्री ने उसका चित्रण "माणक महिमा" में इस प्रकार किया है---
ओह ! पय अलवाणो, पैदल परदेशां जाणो ।
बो भारी भार उठाणो। दृढ़ नियम निभाणो, काम करारो जी ।।"१ खंधा धुल ज्यावै, कहिं लहु-लुहाण हो ज्याव, विश्राम कहो कुण पावै, कर ठावै झोली, सन्त सितारोजी ।। जेठां रो तड़को, पोहां माहां सी झड़ को, नहिं करणो तड़को-भड़को,
कोमल ओ लड़को, कुल उजियारो जी ।। वीभत्स रस का एक उदाहरण देखिए
जब मुनि भावदेव गृहस्थ जीवन में जीने की इच्छा से साधु वेश में ही अपने गांव के बाहर आकर कहीं ठहर जाते हैं और गांव की औरतों के साथ आई हुई नागला उन्हें देखती है तो वह उन्हें पहचान गई कि ये मेरे पतिदेव हैं । उसने सोचा-ये यहां अकेले क्यों आये हैं ? क्या ये संयम से च्युत हो रहे हैं। उसके मन में अनेक प्रकार की आशंकाएं उत्पन्न हुई। वह मुनि के पास गई। उन्हें वंदन किया। मुनि ने अपनी मां रेवती के बारे में उससे पूछताछ की। उसने कहा-उसे मरे कई वर्ष हो गये । तंब मुनि ने नागला के बारे में पूछताछ की। नागला ने कहा-वह आपके क्या लगती है । मुनि ने कहा-वह मेरी पत्नी है। मैंने उसे छोड़ संयम स्वीकार किया था। तब नागला ने जो कहा वह आचार्यश्री के शब्दों में इस प्रकार है
साध घणां बाजे घरबारी, [पण] सुणी न निर्ग्रन्था रै नारी । उज्ज्व ल मत आपां रो, उत्तर दै सती नागला निहारो ।।.१
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