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नक्षत्र २८ हैं-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग् , पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगसर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा ।
___ इन नक्षत्रों में चंद्रमा के साथ सदा दक्षिण दिशा से योग करने वाले मृगसर आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, इस्त, मूल ये ६ नक्षत्र हैं। उत्तर दिशा से योग करने वाले १२ नक्षत्र हैं-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषग्, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवति, अश्विनी, भरणी, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, स्वाती ।।
चंद्र के साथ सदा दक्षिण और उत्तरदिशा से प्रमदयोग करनेवाले सात नक्षत्र हैं-कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा । चंद्र के साथ सदा दक्षिण से प्रमदयोग करनेवाले पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा दः नक्षत्र हैं। चंद्रमा के सर्व बाह्य मंडल में इन नक्षत्रों ने योग किया है, कर रहे हैं और करेंगे । __चंद्रमा के साथ जो सदा प्रमदयोग करता है वह ज्येष्ठा नक्षत्र हैं।' १. देवता
अभिजित् नक्षत्र का ब्रह्म देवता है, श्रवण नक्षत्र का विष्णु, धनिष्ठा का वसु, शतभिषग् का वरुण, पूर्वभाद्रपद का अज, उत्तराभाद्रपद का अभिवृद्धि, रेवती का पुष्य, अश्विनी का अश्व, भरणी का यम, कृत्तिका का अग्नि, रोहिणी का प्रजापति, मृगसर का सोम, आर्द्रा का रौद्र, पुनर्वसु का आदित्य, पुष्प का बृहस्पति, अश्लेषा का सर्प, मघा का पितृ, पूर्वफाल्गुनी का भग, उत्तराफाल्गुनी का अर्थमन, हस्त का सविता, चित्रा का त्वष्टा, स्वाती का वायु, विशाखा का इन्द्राग्नि, अनुराधा का मित्र, ज्येष्ठा का इन्द्र, मूल का नैऋति, पूर्वाषाढ़ा का जलदेव और उत्तराषाढ़ा का विश्व देवता हैं । २. तारे
अभिजित् आदि अट्ठाइस नक्षत्रों के तारे क्रमश: ये हैं
अभिजित् के तीन तारे, श्रवण के तीन, धनिष्ठा के पांच, शर्ताभषा के सौ, पूर्वभाद्रपद के दो, उत्तराभाद्रपद के दो, रेवती के बत्तीस, अश्विनी के तीन, भरणी के तीन, कृत्तिका के छह, रोहिणी के पांच, मृगसर के तीन, आर्द्रा का एक, पुनर्वसु के पांच, पुष्य के तीन, अश्लेषा के छह, मघा के सात, पूर्वफाल्गुनी के दो, उत्तराफाल्गुनी के दो, हस्त के पांच, चित्रा का एक, स्वाति का एक, विशाखा के पांच, अनुराधा के चार, ज्येष्ठा के तीन, मूल के ग्यारह, पूर्वाषाढ़ा के चार और उत्तराषाढा के चार तारे कहे गए हैं ।' ३. नक्षत्र-गोत्र
अभिजित् का मौदगलायन गोत्र, श्रवण का संख्यायन गोत्र, धनिष्ठा का अग्रभावगोत्र, शतभिषा का कणिलायन गोत्र पूर्वाभाद्रपद का जातुकर्णगोत्र, उत्तराभाद्रपद का धनञ्जय गोत्र, रेवती का पुष्यायनगोत्र, अश्विनी का अश्वायनगोत्र, भरणी का भार्गवेष, कृत्तिका का अग्निवेशगोत्र, रोहिणी का गौतमगोत्र, मगसर का भारद्वाजगोत्र, आर्द्रा का लोहित्यगोत्र, पुनर्वसु का वशिष्ठ गोत्र, पुष्य का अवमज्जायन गोत्र, ४२०
तुलसी प्रज्ञा
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