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अश्लेषा का मंडव्यायन गोत्र, मघा का पिंगायन गोत्र, पूर्वफाल्गुनी का गोवाल्लायन गोत्र, उत्तराफाल्गुनी का काश्यपगोत्र, हस्त का कौशिकगोत्र, चित्रा का दर्भायनगोत्र, स्वाति का चामरछायनगोत्र, विशाखा का श्रृंगायन गोत्र, अनुराधा का गोवल्याख्यानगोत्र, ज्येष्ठा का तित्सिायन गोत्र, मूल का कात्यायन गोत्र, पूर्वाषाढा का बब्भियायन गोत्र और उत्तराषाढा का व्याघ्रपत्यगोत्र है ।"
४. नक्षत्र संस्थान (आकार)
अभिजित् का गोशीर्षावलि संस्थान, श्रवण का काहारका, धनिष्ठा का पक्षी के पिंजरे का, शतभिषा का पुष्प के पुंज का, पूर्वभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद का बावडी, रेवती का नावा, अश्विनी का अश्वस्कंध जैसा, भरणी का भग जैसा, कृतिका का क्षुरधार, रोहिणी का शकट, मृगसर का मृग का सिर जैसा, आर्द्रा का रुधिर बिन्दु समान, पुनर्वसु का तुला, पुष्य का वर्धमानक, अश्लेषा का ध्वजा, मघा का प्राकार, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी का पर्यंक, हस्त का हाथ का पंजा, चित्रा का मुखफल्लग ( ललाट का आभूषण), स्वाति का कीलक, विशाखा का दामनी, अनुराधा का एकावली, ज्येष्ठा कागजदन्त, मूल का वृश्विक की पूंछ, पूर्वाषाढा का गजविक्रम, उत्तराषाढा का बैठा हुआ सिंह | "
योगायोग
अभिजित् नक्षत्र चंद्र के सा ९३७ मुहूर्त्त तक योग करता है । शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा ये छह नक्षत्र पंद्रह मुहूर्त्त पर्यंत, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये नक्षत्र ४५ मुहुर्तपर्यंत शेष १५ नक्षत्र तीस मुहूर्त्त पर्यंत, चन्द्र के साथ योग करते हैं । '
अभिजित नक्षत्र सूर्य के साथ ४ अहो रात्रि और ६ मुहूर्त्त पर्यंत, शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा स्वाति और ज्येष्ठा ये छह अहोरात्र और २१ मुहूर्त पर्यंत, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, पुनर्वसु, रोहिणी, विशाखा ये छह नक्षत्र २० अहोरात्र और तीन मुहूर्त्त पर्यंत, शेष पंद्रह नक्षत्र तेरह अहोरात्र और बारह मुहतं पर्यंत सूर्य के साथ योग करते हैं । "
पूर्णिमा बारह है (१) श्राविष्टी (श्रावणमास की ) ( २ ) पोष्टवती ( भाद्रव मास की) (३) आश्विनी (आसोज मास की) (४) कार्तिकी (कार्तिक मास की) (५) मृगश्री ( मृगसर मास की) (६) पोषी (पोष मास की) (७) माघी ( माह मास की ) (5] फाल्गुनी (फाल्गुन मास की) (९) चैत्री (चैत्र मास की ) (१०) वैशाखी ( वैशाख मास की ) ( ११ ) ज्येष्ठामूली (ज्येष्ठ मास की ) ( १२ ) आषाढी ( आषाढ मास की) । १२
श्रावण मास की पूर्णिमा को तीन नक्षत्र योग करते हैं—अभिजित्, श्रवण, और धनिष्ठा । भाद्रवी पूर्णिमा को तीन नक्षत्र योग करते हैं- शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद । अश्विनी पूर्णिमा को रेवती और अश्विनी ये दो नक्षत्र योग करते हैं । कार्तिक पूर्णिमा को दो नक्षत्र भरणी और कृत्तिका, मृगसर मास की पूर्णिमा को दो नक्षत्र, रोहिणी और मृगसर, पोषी पूर्णिमा को तीन नक्षत्र आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य,
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