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________________ जैन आगमों में ज्योतिष : एक पर्यालोचन 0 मुनि श्रीचंद 'कमल' (क) ग्रहों का वर्णन ___ ज्योतिष ग्रन्थों में ९ ग्रहों का वर्णन मिलता है । सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति शुक्र, शनि, राहू और केतु। - आधुनिक ज्योतिषी ३ ग्रह और मानते हैं -नेपच्यून, प्लुटो और यूरेनस ; किन्तु जैन ज्योतिष में ८८ ग्रहों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार हैं अंगारकविकालक, लोहिताक्ष, शनिश्चर, आहुत, प्राहुत, कन, कनक, कनककनक, कनकविताक, कनकसंतानक, सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कर्बटक अजकरक,, दुन्दुभक, शंख, शंखवर्ण, शंखवर्णाभ, कंस, कंसवर्ण, कंसवर्णाभ, रुक्मी, रुक्माभास, नील, नीलाभासः भस्म, भस्मराशि, तिल, तिलपुष्यवर्ण, दक, दकपञ्चवर्ण, काक, कर्कन्ध, इन्द्राग्रि, धूमकेतु, हरि, पिंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, राहु, अगस्ति, मानवक, काश, स्पर्श, धुर, प्रेमुख, विकट, विसन्धि, णियल्ल, पइल्ल, जडियाइलग, अरुण, अग्निल, काल, महाकालक, स्वस्तिक, सौवस्तिक, वर्द्धमानक, प्रलंब, नित्यालोक, नित्योद्योत, स्वयंप्रभ, अवभास, श्रेयस्कर, क्षेमंकर, आभंकर, प्रभंकर, अपराजित, अरजस्, अशोक, विगतशोक, विमल, वितत, वित्रस्त, विशाल, शाल, सुव्रत, अनिवृत्ति, एकजटिन्, जटिन्, करकरिक, दोराजार्गल, पुष्यकेतु, भावकेतु, ।' राहु के दो भेद हैं-नित्य राहु और पर्वराहु । नित्यराहु कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को चंद्रमा का एक भाग १५ आवृत करता है, द्वितीय को २५ आवृत करता है, इस प्रकार अमावस को पूर्ण आवत करता है। पर्वराहु ग्रहण का कारण बनता है । पर्वराहु कम से कम ६ मास में और अधिक से अधिक ४२ मास में चन्द्रमा को आवृत करता है, उसे चन्द्रग्रहण कहा जाता है । ४८ वर्षों में सूर्य को आवत कर पर्वराहु सूर्य ग्रहण करता है। राहु के पर्यायवाची नाम ९ हैं-शृंगाटक, जटिलक, खतय, खरय, दर्दर, मकर, मत्स्य, कच्छप, कृष्णसर्प । ये नाम ज्योतिष ग्रन्थों से भिन्न हैं । (ख) नक्षत्रों का विवरण नक्षत्रों पर जैन आगमों में विशेषकर जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में व्यवस्थित रूप में वर्णन है। नक्षत्रों के नाम, चंद्र के साथ योग, नक्षत्रों के देवता, नक्षत्रों के तारे, नक्षत्रों के गोत्र, नक्षत्रों के संस्थान, चंद्रयोग का काल, सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या, सन्निपात आदि विषयों की चर्चा क्रमशः विस्तार से की गई है। तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं-खंड २३, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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