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________________ जन्म भी स्मृति पथ पर आ जाते हैं । भाष्यकार ने जाति स्मृति सम्बन्धी जैगीषव्य का संवाद भी उद्धृत किया है। भगवान जैगीषव्य को दस महासर्गों के सभी जन्म परिणामक्रम ज्ञात हो गये थे। वाचस्पति और विज्ञानभिक्षु दोनों इस बात में तो सहमत हैं कि देश, काल और निमित्त इन तीनों अनुबंधों से युक्त संस्कार ही पूर्वजन्म के अपरोक्ष ज्ञान के हेतुभूत हैं पर सूत्र के भाष्यगत 'परत्र' शब्द के अर्थ में मतभेद है । मिश्र के मतानुसार योगी स्वयं के पूर्व जन्मों के समान अन्य व्यक्ति के पूर्व जन्मों का साक्षात्कार कर सकता है । जबकि विज्ञानभिक्षु के अनुसार परत्र शब्द भावी जन्मों के ज्ञान का सूचक है।" बौद्ध दर्शन के अनुसार षडभिज्ञा में चतुर्थ अभिज्ञा का नाम है --पूर्वनिवासानुस्मृति ज्ञान । इस ज्ञान के द्वारा व्यक्ति अपने एक या अनेक पिछले जन्मों का यथार्थ स्मरण कर लेता है । बौद्ध मत के अनुसार इसकी उत्कृष्ट सीमा अनेक संवृतकल्प और विवतकल्प है । इसके द्वारा उस जन्म में स्वयं के नाम, वंश, जाति, सुख-दुःख के अनुभव आदि सम्पूर्ण जीवन-विवरण को जाना जा सकता है ।३२ षट्खण्डागम में धारणा के पांच पर्यायवाची नाम उपलब्ध होते हैं । स्वामी वीरसेन ने उनका स्पष्टीकरण निम्नांकित रूप से किया है। १. धरणी - जिस प्रकार पृथ्वी, गिरि, सरिता आदि को धारण करती है उसी प्रकार निर्णीत अर्थ को धारण करना धरणी है। २. धारणा -अवेत अर्थ को जिसके द्वारा धारण किया जाता है वह धारणा है । धरणी और धारणा में कोई अर्थ संबंधी भिन्नता प्रतीत नहीं होती। ३. स्थापना- जिसके द्वारा ज्ञात अर्थ की संस्कार रूप में स्थापना होती है । ४. कोष्ठा-कोष्ठा का अर्थ है दुस्थली, जिसमें धान्य को सुरक्षित रखा जाता था। संस्कारों का कोष्ठा के समान संरक्षण का कार्य कोष्ठा है । ५. प्रतिष्ठा-जिसमें अवधारित अर्थ को अविनश्वर रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है, वह प्रतिष्ठा है ।33 षट्खण्डागम के एकार्थक नामों की नन्दी सूत्र से तुलना की जा सकती है पर ज्ञान प्रक्रिया के क्रमिक विकास का जो निरूपण नन्दी चूणि एवं टीका द्वय में उपलब्ध होता है । धवला में उसका अभाव है, तत्त्वार्थभाष्य में धारणा की तीन क्रमिक अवस्थाओं प्रतिपत्ति, मत्यवस्थान और अवधारणा का निर्देश करने के पश्चात् प्रत्येक के क्रमश: निश्चय, अवगमन और अवबोध-इन पर्यायों का निर्देश किया गया है। इसकी तुलना विशेषावश्यक भाष्यगत अविच्युति, वासना और स्मृति से की जा सकती है। इस प्रकार के पर्यायवाची नामों को निम्नलिखित तालिका द्वारा समझा जा सकता तत्त्वार्थभाष्य प्रतिपत्तिनिश्चय मत्यवस्थानअवगम विशेषावश्यकभाष्य अविच्युति वासना नन्दीसूत्र धरणा धारणा षटखण्डागम धरणी धारणा ४०८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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