SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने को स्वतंत्र बनाया है । सात्र मनुष्य की स्वतंत्रता का इस हद तक समर्थक है कि वह मनुष्य को अपनी वासनाओं और मूल प्रवृत्तियों के वशीभूत नहीं मानता है । उनकी उत्पत्ति के लिये भी मनुष्य उत्तरदायी है । मनुष्य अपनी परिस्थितियां भी स्वयं निर्मित करता है । वह किन्ही परिस्थितियों के लिये बाध्य नहीं है, सात्र कहता है-"मनुष्य सर्वथा और सर्वदा स्वतंत्र है, स्वतंत्रता पर आवरण पड़ सकता है किन्तु वह नष्ट नहीं होती है।" सार्च कहता है-न कोई कार्य स्वयं भला-बुरा है न कोई लक्ष्य पूर्ण और अन्तिम है । ऐसी कोई भौतिक मानसिक या ऐतिहासिक संरचना नहीं है, जिसका अतिक्रमण मनुष्य अपनी स्वतंत्र सत्ता से न कर सकता हो। नीति संबंधी विचार सार्च के नीति शास्त्र में सबसे अधिक प्रामाणिकता है, जो जैन धर्म में पंचमहाव्रत के समान है। प्रामाणिकता के लिये नैतिक नियमों की नहीं वरन् एक जीवन विधि की आवश्यकता होती है । सात्र मानता है कि चयन के पूर्व मनुष्य के सामने कोई नैतिक नियम नहीं है। परन्तु चयन के बाद मनुष्य की चेतना का यह आवश्यक कार्य हो जाता है कि वह मूल्यों का निर्धारण करें। सात्र ने नीति पर अपने विचार बहुत समय बाद प्रकट किये जिससे कई आलोचकों ने समझा कि सार्व नैतिकता का समर्थन नहीं करता, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। सार्ने के नैतिक विचारों को उसके "बुरे विश्वास" (Bad faith) को जानकर या उसका विश्लेषण करके जाना जा सकता है। पर्यावरण का प्रभाव ___ इस संबंध में सात्र का विचार है कि वह व्यक्ति पर यंत्रवत् प्रभाव नहीं डालता । व्यक्ति पर्यावरण से जितना संबंधित होता है और उससे जितना प्रयोजन रखता है। उतने ही अनुपात में पर्यावरण मनुष्य पर सक्रिय होता है। यह पर्यावरण की सक्रियता व्यक्ति के लिये एक स्थिति उत्पन्न करती है। मनुष्य उस स्थिति के अनुकूल आचरण करता है । मनुष्य का बाह्य व्यवहार उसके चयन का प्रतीक है । सार्च उसे पर्यावरण के प्रभाव की उत्पत्ति नहीं मानता। इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य विविधताओं का संग्रह नहीं अपितु समग्रता है। वह अपने छोटे-छोटे कार्य व्यापार में अपनी समग्रता का उपयोग करता है । इस प्रकार अस्तित्व की प्रमाणिकता स्वतंत्रता, उत्तरदायित्व भावना, प्रतिबद्धता तथा कार्यशीलता सा दर्शन के मुख्य अंश है। 0 -श्रीमती वीरबाला छाजेड़ द्वारा प्रदीप छाजेड़ एण्ड कम्पनी १००, गोपाल मण्डी मार्ग कन्थल, उज्जैन--४५६००६ तुलसी प्रमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy