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________________ मानने के लिये बाध्य है । वह कहता है ---- मनुष्य का जीवन विशुद्ध रूप से उसका अपना ही है उसमें किसी भी प्रकार की पूर्व स्वीकृतियों एवं विश्वासों की गुंजाईश नहीं है, चाहे वे धर्म, दर्शन या समाज से सम्बद्ध हों। सा के मानव संबंधी विचार ___अस्तित्ववादी दार्शनिकों ने मानव सत्ता को सर्वोपरि माना है। सात्र ने तो मानव को संपूर्ण स्वतंत्रता प्रदान कर ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया है । सार्च यह मानता है कि मनुष्य पूर्ण स्वतंत्र है वह जैसा चाहता है वैसा अपने आपको बनाता है । सार्च की दष्टि में चुन सकने या निर्णय करने की शक्ति या सार्थकता स्वतंत्रता है। उसकी यह स्वतंत्रता वैयक्तिक है । उसने चुनाव को एक वाक्य में रखते हुए कहा है Man cannot be sometime slave and sometime free. He is wholly and forever free or he is not free at all. सात्र का स्वतंत्रता संबंधी प्रत्यय उसके शन्यतावाद प्रत्यय से संबंधित है। इस कारण वह कहता है कि "मनुष्य स्वतंत्र होने के लिये अभिशप्त है।" ___ मैं जो कुछ करूं मेरा तत्व मेरे कार्यों में, मेरी बातचीत में में, मेरी अनुभूति में सदा व्यक्त होता रहता है । अतः यह स्पष्ट है कि अस्तित्व ही तत्व की मूल अभिव्यक्ति है, क्रिया के कर्म को सात्र अस्तित्व कहता है । अस्तित्व का क्रम शाश्वत गतिशीलता का कर्म है । हमारा अस्तित्व है, इसका अर्थ यह भी है कि हम कार्य करने के क्रम में है। सार्च मानवीय उत्तरदायित्व को बहुत महत्त्व देता है । सार्व की दृष्टि में यह जान लेना ही पर्याप्त है कि मनुष्य का अस्तित्व है वह इससे आगे जाना ही नहीं चाहता, उसके आगे कोई लक्ष्य ही निर्धारित नहीं करना चाहता है। जबकि आत्मा के लिये यह जान लेना ही पर्याप्त नहीं है । “वो है" । फिर भी योगेन्द्र शाही कहते है-“सार्व में सदैव यह भावना प्रबल रही है कि मनुष्य को वह होना है, जो अब तक वो नहीं जीवन को उद्देश्य रहित मानते हुए सात्र में स्थितियों को बदलने व मुक्ति की कामना है वह आचार्यजी की ही भांति इन “चरम स्थितियों में ही वास्तविक स्वतंत्रता की अनुभूति की संभावना पर बल देता है । अधिकांश भारतीय दर्शनों को यह मान्यता रही है कि वे कांक्षा या ईच्छा को वेदना का कारण मानते हैं । ये इच्छायें त्याग कर ही व्यक्ति मुक्त हो सकता है। सार्व का विचार है कि यह इच्छाओं को त्याग अपने आपको नष्ट कर देगा। सार्च का मत है मनुष्य को अपने अस्तित्व के बारे में ज्ञान होना ही जीवन का लक्ष्य है। ____ मनुष्य चयन करने के लिये स्वतंत्र है किन्तु न चयन करने के लिये स्वतंत्र नहीं दो विकल्पों में से एक विकल्प का चयन न करना भी तो चयन करना ही है। इसलिये सात्र कहता है कि मनुष्य को स्वतंत्र होना पड़ता है। मनुष्य के सामने स्वतंत्र होने की परवशता इसलिये है कि उसने न अपने अस्तित्व की रचना की, न ही खण्ड २३, अंक ४ ५०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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