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________________ मध्यकालीन जैन-स्थापत्य के तीन भव्य जैन मंदिर ० परमेश्वर सोलंकी सन् १९९१ में मार्च ९-१० को नागौर किले में एक अखिल भारतीय स्तर का सेमीनार आयोजित हुआ था । उस सेमीनार में स्थानीय इतिहास को तत्स्थान में प्राप्त ऐतिहासिक संदर्भो से देखने का प्रयास हुआ। प्रस्तुत लेखक ने उस सेमीनार में "लाडनूं-ऐतिह्य का पुरश्चरण" शीर्षक से एक आलेख पढ़ा था। ___ उस आलेख में सं० ११३६ आसाढ सुदि ८ को माथुर संघ के आचार्यश्री गुणकीत्ति द्वारा प्रतिष्ठापित लाडनूं नगर के शांतिनाथ मंदिर (बड़ा जैन मंदिर) का परिचय और उसमें प्राप्त १३ शिलालेखों का मूलपाठ प्रस्तुत कर उनसे प्राप्त ऐतिह्य का पुरश्चरण किया गया था। शिलालेखों का मूलपाठ तुलसी प्रज्ञा (१६।४) में छपा है। इस पुरश्चरण में बताया गया था कि लाडनूं (तत्कालीन खण्डिल) में साहू देल्ह के पुत्र बहुदेव के ज्येष्ठ पुत्र महीपति के गीणगणोदेवर क्षेत्र में बना साहू देल्ह का 'वरद' नामक उद्यान था। उसमें गणादित्य पुत्र सूत्रधार अमल द्वारा बनाया गया देवकुल था और उस देवकुल में युग विशिष्ट जिन मंदिर है जिसमें भगवान् शांतिनाथ की भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है। संयोग से और पुरजनों के सुरक्षा-उपायों से यह जैन मंदिर पूरी तरह अक्षत एवं अपने मूल स्वरूप में ज्यों का त्यों वर्तमान है। केवल इसके देवकुल का दक्षिणी भाग संभवतः अभी भी भूमिगत अथवा अदृष्ट लोप हो गया है। इस जैन मंदिर में सं० १२०१ में स्थापित पादुका-युगल भी अदृष्ट हो गए हैं किन्तु सं० १२१९ में स्थापित तोरण और इसी संवत्सर में स्थापित सरस्वती प्रतिमा तथा सं० १२२६ में बनी जिन बिम्बों की चतुर्विशितिका वर्तमान है । और भी अनेकों जिन प्रतिमायें यहां विराजमान हैं जो संभवतः अन्यत्र से एकत्र की गई हैं । लाडनूं में बनी ईदगाह में पुराविद् श्री गोविन्द अग्रवाल ने एक फलक पर सं० ११६२ का लेख देखा था। वर्तमान गढ़ के बाहर बने मंदिर में गुम्बज पर सं० १४२४ का लेख है और श्वेताम्बर जैन मंदिर (सेबकों का चौक) में पुनरुद्धार का एक त्रुटित लेख सं० १३५२ का लगा है । इसलिए सिद्धसेन सूरी के 'सकल तीर्थ स्तोत्र' के अनुसार सांभर देश के छह तीर्थों में एक खंडिल्ल (लाडनूं) में अनेकों जैन मंदिर रहे होंगे। तुलसी प्रज्ञा, लाग्नं : खंड २३ अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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