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________________ २. पिछले दिनो अहमदाबाद (गुजरात) के निकट उमटा गांव में भी एक जैन मंदिर का सम्पूर्ण स्थापत्य एक टीले को हटा कर उजागर किया गया है। गांव के बीचों बीच बने एक मिट्टी के टीले पर कभी गांव की चौकी हुआ करती थी। बाद में वहां प्राथमिक शाला का भवन बना दिया गया। दो वर्ष पूर्व ग्राम समिति ने अपनी आय बढ़ाने के लिए उस प्राथमिक शाला के निकट ही कुछ पक्की दुकानें बनाने का विचार किया और उनके लिए नींव खोदी तो उन्हें ईंटों की एक पक्की दीवार नजर आई। उसे निकाल कर उसी के सहारे दुकानों की नींव भरी जाने लगी किन्तु दीवार के साथसाथ और खाली जमीन पाने के लिए दीवार के पीछे अधिक स्थान निकालने की नियत से दीवार को तोड़ा गया तो उसके पीछे मिट्टी भरी मिली और मिट्टी हटाने पर वहां पत्थर की सुन्दर मूर्तियां और कलाकृतियां दृष्टिगत हुईं। इस पर तुरन्त अधिकारियों को सूचना दी गई और पूरी सावधानी से दीवार हटाकर एक भव्य जैन मंदिर का स्थापत्य उद्घाटित कर लिया गया। इस प्रकार मोटी दीवार बना कर पूर्वजों द्वारा अपने मंदिर-स्थापत्य को सुरक्षित रखने को उसे जमींदोज कर देने की यह दिलचस्य कहानी उजागर हो गई। यद्यपि इस मंदिर-स्थापत्य में स्थापित कोई जिन प्रतिमाएं वहां नहीं मिलीं तथापि इस स्थापत्य में अनेकों तीर्थंकर, शासन देवता और सुन्दर अलंकरण विद्यमान हैं और बड़ा समृद्ध परिकर और बेजोड़ शिल्पालंकन उपलब्ध है। ३. अभी हमें बाड़मेर (राजस्थान) के निकट पर्वतों की उपत्यका में एक और बेजोड़ मंदिर के अवशेष मिले हैं। यह मंदिर-स्थापत्य राजमार्ग पर स्थापित था, इसलिए इसे तोड़-फोड़ दिया गया; किन्तु आवासीय स्थानों से दूर होने से अभी तक भग्नावशेष रूप में यह भी सुरक्षित है। इस मंदिर-स्थापत्य के बारे में अध्ययन और शोध की जानी अपेक्षित है। हमें उस स्थल पर प्राप्त कतिपय शिलालेखों के फोटोग्राफस् मिले हैं जिनका मूलपाठ नीचे प्रस्तुत है (१) प्राचीन लेख पंक्ति-१. ॥९०॥ संवत् १३५२ वैशाख सुदि ४ श्री बाहडमेरी महारा " -२. ज कुलश्री सामंतसिंहदेव कल्याण विजयराज्ये तन्नियु। " --३. क्त श्री२ करणे मं० वीरासेल वेलाउल भा० गिगन प्रभृतयो " ---४. धर्माक्षराणि प्रयच्छति यथा । श्री आदिनाथ माथसति" -५. ष्ट यान श्री विघ्नमर्दनक्षेत्रपाल श्री चउंडराजदेवयो" -६. उभय माग्रीप समायात सार्थ उष्ट्र १० वष २० उभयादपि अद्धं " -७. साथ प्रति द्वयोर्देवयो पाइलापदे तीस प्रियदशं विशोपका० " -८.--न ग्रहीतव्याः । आसो लागा महाजनेन मनिता ।। यथोक्तं " -९. बहुभिः वसुधा भुक्ता राजभिः सागरादिभिः । यस्य यस्य यदा भू० " - (मी) तस्य तस्य तदाफलं ॥१ ॥ ३५० तुलसी प्रज्ञा . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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