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________________ मूत्रादि का विसर्जन करना और शरीर का रखना उत्सर्ग समिति है ।" ज्ञानावर्ण में कहा है कि जीवरहित पृथ्वी पर मल-मूत्र श्लेष्मादि को बड़े यत्न से क्षेपण करने वाले मुनि के उत्सर्ग समिति होती हैं । १८ गुप्ति ___ मन-वचन-काय से उत्पन्न अनेक पाप सहित प्रवृत्तियों का प्रतिषेध करने वाला प्रवर्तन अथवा तीनों योगों का रोकना गुप्ति है ।१९ मन-वचन-काय गप्ति के लक्षण नियमसार तात्पर्यवृत्ति के अनुसार सकल मोह राग-द्वेष के अभाव के कारण अखण्ड अद्वैत परमचिद्रूप में सम्यक रूप से अवस्थित रहना ही निश्चय मनोगुप्ति है । समस्त असत्य भाषा का परिहार अथवा मौन व्रत वचन गुप्ति है। सर्वजनों की काय सम्बन्धी निवृत्ति कायोत्सर्ग है । वही काय गुप्ति है । ५ स्थावरों और बसों की हिंसानिवृत्ति कायगुप्ति है । परमसंयम धर परमजिनयोगीश्वर अपने (चैतन्य रूप) शरीर में अपने (चैतन्य रूप) शरीर से प्रविष्ट हो गये उनकी अपरिस्पन्द शरीर में मूर्ति हो निश्चय कायगुप्ति है ।२० ज्ञानावर्ण में कहा है कि राग-द्वेष से अवलम्बित समस्त संकल्पों को छोड़कर अपने मन को स्वाधीन करने वाले, समता भाव में स्थिर करने वाले तथा सिद्धान्त के सूत्र की रचना में निरन्तर प्रेरणा रूप करने वाले मुनि के सम्पूर्ण मनोगुप्ति होती है ।२१ वचनों की प्रवृत्ति को संवर रूप (वश) करने वाले तथा समस्यादि का त्याग कर मौन धारण करने वाले महामुनि के वचन गुप्ति होती है ।२२ परिषह आ जाने पर भी पर्यङ्कासन से ही स्थिर रहने वाले मुनि के ही कायगुप्ति होती है ।२३ खण्ड २३, अंक ३ ३०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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