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संदर्भ-संकेत :
१. दे० भारतीय ज्योतिष (ले० शंकर बालकृष्ण दीक्षित) हिन्दी-अनुवाद, (प्र. ___ सं०), पृ० ३२७-२८ । २. वही, पृ० ३२८ । ३. अलबेरूनी का भारत (सचाऊ), खं० १ पृ० १५७,२९८,३३४,३३६,३६७ । ४. प्रणिपत्य महादेवं भुवन गुरुं च लोकेशम् ।
भट्टोत्पलो लघुतरां जातक टीका करोति शिष्यहिताम् ।। ५. बृहज्जातक की एक-दो प्रतियों में 'वस्वष्टाश्वमिते' पाठ भी मिला है, जिससे किसी किसी ने इसका काल शाके ७८८ का उल्लेख किया है (दे० हिन्दी विश्व कोश-सं० नगेन्द्रनाथ वसु, प० ७०६, भा० १५), किंतु यह सही नहीं है। इसी
प्रकार 'वस्वश्वाश्व मिते' (शाके ७७७) पाठ का अनुमान भी अनावश्यक है । ६. दे० जर्नल आफ इंडियन हिस्ट्री, खं० २८ (१९५० ई०) पृ० १०३-११० । ईरानी शासक कुरुष से संबंधित एक शक काल का होना डॉ० देव सहाय त्रिवेद
भी मानते थे। ७. वही, खंड २८ (१९५० ई०) पृ० १०६ । एक विद्वान् ने उत्पल की तिथि सन्
३४० दी है। ८. दे० सि० शिरो० प्र० अध्याय, श्लोक ९-१२ तथा इसी ग्रन्थ से एक अन्य श्लोक
बृहज्जातक २१ की टीका में उद्धृत है। ९. दे० सि० शि० प्रश्नाध्याय श्लोक २८ । १०. दे० पं० सीताराम मा का बहज्जातक का उत्पल-टीका सहित संस्करण, जिसमें
उक्त पाठ दिया गया गया है । इसी प्रकार श्री विद्या भूषण सुब्रह्मण्य शास्त्री का यह कथन कि उत्पल, मुगल-सम्राट जहांगीर के काल में हुआ, अशुद्ध है ।
दे० कल्याण वर्म-रचित सारावली, भूमिका पृ० १-२ (बम्बई-संस्करण)। ११. दे० अलबेरूनी का भारत (सचाऊ) खं० १, पृ० १५७-५८,२९७,३३४,३३६
३७,३६१,३६८ आदि । पृ० २९८ पर तो उसने बहत्संहिता की उत्पल-टीका
से एक वक्तव्य भी उद्धृत किया है। १२. दे० भारतीय ज्योतिष (शंकर बाल कृष्ण दीक्षित) हिन्दी-अनुवाद (प्र० सं०)
पृ० ३२८ । शाके १५६४ में लिखित खण्ड खाद्य की एक अन्य टीका में तथा शाके १५६८ में रचित 'पंचांग कोतुक' में भी उत्पल का उल्लेख है। दे. वही,
पृ० ३३७ । १३. पूर्ववर्ती भास्कर, जिसे भास्कर प्रथम कहा गया है, के 'महाभास्करीय', 'लघु
भास्करीय' तथा 'आर्य भट तंत्र-भाष्य' (६२९ ई.) नामक ग्रंथ मिलते हैं, किंतु इनकी रचना के रूप में 'भास्कर सिद्धान्त' का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य पूर्ववर्ती भास्कर की रचना है । भास्कराचार्य के पूर्वजों में 'भास्कर भट्ट' नामक एक विद्वान् हुए हैं, जो उत्पल के समकालीन थे । संभव है-'भास्कर सिद्धान्त' उन्हीं की रचना हो। 'भास्कर सिद्धान्त' और उसके रचयिता के संबंध में खोज की जानी आवश्यक है।
तुलसी प्रशा
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