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________________ किए हैं। कहीं-कहीं तो एक विषय पर आठ-दस प्राचीन संहिताकारों के वचन दिए हैं । २५ इससे यह स्पष्ट है कि वे सब संहिताएं उस समय उपलब्ध थीं । वास्तव में यह टीका उनकी असाधारण विद्वत्ता और आश्चर्यजनक स्मरण शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है । उन्होंने इस टीका में संस्कृत और प्राकृत के बहुसंख्यक ग्रंथों को उद्धृत किया है, जिनमें से अधिकांश आज अप्राप्य है ।" यह टीका बड़ी विस्तृत है । उपर्युक्तोल्लिखित दोनों टीकाओं के रचनाकाल १७ विषयक दोनों श्लोकों से ज्ञात होता है कि यह टीका केवल ११ मास में लिखी गई थी। इतनी विशद टीका इन्होंने इतने थोड़े समय में लिखी, यह आश्चर्य की ही बात है । उक्त टीका से ज्ञात होता है कि उत्पल प्राचीन ग्रन्थों के सफल शोधक भी थे । उन्होंने पाठों का निर्णय करने तथा ग्रंथ की प्रामाणिक व्याख्या के लिए वैज्ञानिक शैली का आश्रय लिया है । अनेक स्थलों पर उन्होंने पाठ भेदों और पूर्ववर्ती टीकाकारों के विचारों का उल्लेख किया है। उन्होंने गर्ग, पराशर आदि के संहिता ग्रंथों से उद्धरण दिए हैं, जो अब अप्राप्य हैं । इस प्रकार नष्ट प्रायः ग्रन्थों के विषय में जानकारी का एक मात्र आधार उत्पल की टीका ही है । उन्होंने बृहत्संहिता के कुछ अध्यायों एवं पद्यों को सकारण प्रक्षिप्त घोषित किया है ।' अतः बृहत्संहिता के मूल पाठ के निश्चय तथा उसे अच्छी प्रकार से समझने के लिए उत्पल की टीका का विशेष महत्व है । २८ खण्ड २३, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३६३ www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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