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________________ आरम्भ किया गया, जिसे शक - काल कहा गया। भट्टोत्पल ने 'शाके' शब्द से इसी शक काल का उल्लेख किया है । इसके अनुसार टीका की रचना ई० सन् ३३८-३७ में हुई । किन्तु यह मत पूर्णतया निराधार है, क्योंकि इस संबंध में पुष्ट प्रमाणों का अभाव है । अतः कुरुष ने किसी संवत् की स्थापना नहीं की। यहां यह भी ध्यातव्य है कि कुरुष एवं उसके वंशजों के अभिलेखों में केवल राज्य वर्षों का उल्लेख है, किसी संवत् का नहीं । दूसरी ओर भारतीय परम्परा इस विषय में एक मत है कि शालिवाहन शक का आरम्भ ई० सन् ७८ में हुआ था । भट्टोत्पल ने वृहज्जातक की अपनी टीका में भास्कर का उल्लेख किया है और उसके ग्रंथ 'भास्कर सिद्धान्त' नामक ग्रंथ से कुछ श्लोक उद्धृत किए हैं, जो प्रसिद्ध भास्कराचार्य रचित 'सिद्धान्त शिरोमणि' के श्लोकों से अभिन्न हैं ।' भास्कराचार्य ने सिद्धान्त - शिरोमणि की रचना शाके १०७२ (११५० ई०) में की थी । अतः एक विचित्र उलझन सामने आती है । यदि उत्पल ने वास्तव में ये श्लोक भास्कर के सिद्धान्त शिरोमणि नामक ग्रंथ से ही लिए हैं, तो उनका काल १९१५० ई० के बाद ही होना चाहिए, पहिले नहीं । किंतु यह तथ्य वृहज्जातक एवं बृहत्संहिता की उनकी टीकाओं के रचना-काल-सूचक श्लोकों के विपरीत है । इस विरोधात्मक स्थिति को दूर करने के लिए कुछ लोग 'वस्वष्टाष्ट मिते' के स्थान पर 'वस्वष्टाष्टिमिते' पाठ का अनुमान करते हैं, जिसके अनुसार टीकाओं की रचना शाके १६८८ में माननी पड़ेगी, किन्तु यह अनुमान निरर्थक है । कारण यह है कि अलवेरूनी ने १०३० ई० में लिखे अपने भारत - विवरण में बार-बार उत्पल का उल्लेख किया है ।" इसी प्रकार कश्मीरी लेखक वरुण भट्ट (१०४० ई०) ने भी ब्रह्मगुप्त के 'खण्ड खाद्यकरण' की अपनी टीका में उत्पल की चर्चा की है ।" इससे स्पष्ट है कि उत्पल उक्त दोनों से पूर्व का है । जहां तक प्रश्न सिद्धान्त शिरोमणि के उक्त श्लोकों का है, तो उसके संबंध में इतना ही कहा जा सकता है कि संभव है भास्कराचार्य ने उक्त श्लोक सीधे भास्कर नामक पूर्ववर्ती लेखक के ग्रंथ 'भास्कर सिद्धान्त' से ही लिए हों।" उत्पल ने तो जिस ग्रंथ के उद्धरण दिए हैं, उसका नाम स्पष्ट रूप से 'भास्कर सिद्धान्त' बतलाया ही है, सिद्धान्त शिरोमणि नहीं। इससे प्रतीत होता है कि भास्कराचार्य तथा भट्टोत्पलदोनों ने एक ही आधार सूत्र से श्लोकों को ग्रहण किया है । इसीलिए श्लोकों की यह समता हुई इस प्रकार उत्पल का समय ई० सन् की १०वीं शताब्दी का मध्य ठहरता है । किंतु इस समय को स्वीकार करने में एक और कठिनाई सामने आती है । वह यह है fe अरबी लेखक अबू मशर ने, जिसका देहान्त सन् ८८६ ई० (९४३ वि० ) में हुआ, उत्पल की वृहज्जातक - टीका से एक उद्धरण दिया है । यदि सन् ८८६ के पूर्व हुए एक लेखक ने उत्पल को उद्धृत किया है, तो निश्चय ही उत्पल का काल इससे पहले होगा । अतः इस बारे में यह सोचा जा सकता है कि उत्पल की टीकाओं के रचे जाने की तिथि ( शाके ८८८) अशुद्ध है ।" किंतु ऐसा सोचना समीचीन नहीं है, क्योंकि ३६० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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