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________________ भट्टोत्पल : समय और रचनाएं 18 वेद प्रकाश गर्ग ज्योतिष विषयक ग्रंथों के रचयिता भट्टोत्पल महान् ज्योतिर्विद वराहमिहिर की कृतियों के सफल टीकाकार के रूप में विशेष प्रसिद्ध हैं । किंतु दुर्भाग्य से उनके वैयक्तिक जीवन के बारे में जानकारी का एक प्रकार से अभाव ही है । उत्पल कश्मीरनिवासी थे, ऐसा अनुमान विद्वानों ने किया है। कारण यह है कि ब्रह्मगुप्त रचित खण्डखाद्य की इनकी टीका की प्रति कश्मीर में मिली है और शाके १५६४ की खण्डखाद्य की एक अन्य टीका एवं शाके १५६७ का पंचांग- कौतुक - कश्मीर में विरचित इन दोनों ग्रंथों से ज्ञात होता है कि उत्पल की यह टीका कश्मीर में बड़ी प्रसिद्ध थी । उत्पल ने अपनी रचनाओं में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है, जो कश्मीर में प्रचलित थे । खण्डखाद्य - टीकाकार वरुण ( शाके ९६२ ) ने तो इन्हें स्पष्ट ही कश्मीरवासी कहा है ।' अलवेरुनी ने भी इन्हें कश्मीरी लिखा है ।' उत्पल के पूर्वजों के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। लाघुजातक टीका के मंगल- श्लोक से स्पष्ट है कि उत्पल शैवधर्मानुयायी थे । उत्पल का काल भी अभी तक पूर्णतया निश्चित नहीं हो सका है, जबकि उसका निश्चय किया जाना अनेक संस्कृत एवं प्राकृत लेखकों के काल-निर्णय की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, जिनके ग्रंथों का उल्लेख उन्होंने किया है । प्रस्तुत लेख में ऐसा ही प्रयास है । वराहमिहिर के वृहज्जातक ग्रंथ की टीका का काल भट्टोत्पल ने शाके ८८८, चैत्र शुक्ला पंचमी, गुरुवार दिया है चैत्र मासस्य पञ्चम्यां सितायां गुरुवासरे । वस्वष्टाष्टमिते शाके कृतेयं विवृतिर्मया ॥ और वराहमिहिर की ही रचना बृहत्संहिता की टीका का काल शाके फाल्गुन कृष्ण द्वितीया, गुरुवार दिया है । फाल्गुनस्य द्वितीयायामसितायां गुरोर्दिने । वस्वष्टाष्टमिते शाके कृतेयं विवृतिर्मया ॥ यदि इन्हें शक संवत् ( ई० सन् ७८ से आरम्भ होने वाला) मानें, जैसा कि ‘शाके' शब्द से आभास होता भी है, तो इन दोनों की रचना ई० सन् ९६६ में होना माना जायेगा, किंतु कुछ विद्वानों ने इस तिथि की विचित्र व्याख्या करने का प्रयास किया है । उनके विचारानुसार ईरानी सम्राट् कुरुष द्वारा अपने विशाल साम्राज्य की स्थापना के स्मारक रूप में ईसा पूर्व ५५१-५५० में एक नवीन काल-गणना का तुलसी प्रज्ञा, लाडनूं : खण्ड २३ अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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